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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १००८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चत्थं भासजायं ४ || से बेमि जे अईया जे य पड़प्पन्ना जे अणागया अरहंता भगवंतो सन्वे ते एयाणि चैव चत्तारि भाज्जायाई भासिं वा भासंति वा भासिस्संति वा पन्नर्विषु वा ३, सव्वाईं च णं एयाई अचित्ताणि वण्णताणि गंधमताणि रसमंताणि फासमंताणि चओवचइयाई विप्परिणामधम्माई भवतीति अक्खायाई ॥ मू० १३२ ) साधु आ अंतःकरणमा उत्पन्न थएला ( इदम् आ प्रत्यक्ष समीप वाची शब्द वडे बतावेल होवाथी ) तथा जोडाजोड वाणी संबंधी आचार ते वागाचार ( वाणीना आचार) सूत्रकार बतावे छे ते सांभळीने तथाहृदयमां जाणीने भाषा समिति वडे ते साधुए वचन बोल. ते हवे विगत कार कहे छे. तेमां प्रथम आवी भाषा न बोलवी, ते अनाचरित भाषानुं वर्णन करे छे, ते न बोलवा योग्य अनाचार कहे छे, एटले, जे क्रोधथी वाचा बोले छे, जेमके तुं चोर छे दास छे ! तथा केटलाक मानथी बोले छे, जेमके हुं उत्तम जातिनो हुं तुं अधम जातिनो छे, तथा मायाथी बोले छे जेमके हुं मांदो छु. (पण मांदो होय नहि ) अथवा बीजानो सावध (पापवाळी) संदेशो कोइ उपाय वडे कहीने पछी मिध्यादुष्कृत करे छे, आ तो माराथी सहसा (उतावळथी) बोलाइ गयुं छे! तथा कोइ लोभयी बोले के आ वचन बोलवाथी हुं कंइक मेळवीश. तथा कोइनो दोष जाणता होय, तेनो दोष उघाडवा वडे कठोर वचन बोले छे, अथवा अजाण पणे बोले छे, आ बधुं उपर कहेलुं सघलुं क्रोधादिनुं वचन पाप सहित होवाथी ( सावद्य छे माटे ) ते वर्जनुं, अर्थात् विवेकी बनीने साधुए ते वचन न बोलं. तथा कोइ साथे साधु बोलतां निश्वायात्मक वाचा न बोलवी के " अमुक बरसाद विगेरे घनशेज" तेवीज़ रीते अध्रुव पण For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥ १००८ ॥
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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