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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तपावची, अने त्यां सुधी किनारेज उभा रहे, अने शरीर मूकाया पछीज वीजा गाम तरफ विहार करवो, पण त्यां उभा रहेवाथी आचा चोरनो भय लागतो होय तो तुर्त कायाने स्पर्श कर्या विनाज हाथ लांचा राखी गाम तरफ चाल्या जवू. सूत्रम् से भिक्खू वा गामणुंगाम दुइज्जमाणे नो परेहि सद्धि परिजविय २ गामा० दुइ०, तो० सं० गामा० इ० ॥ (मु० १२३) || ॥९९५॥ ॥९९५॥ मुनिए विहार करतां मळेला गृहस्थो साथे बहु बकबकाट करता जर्बु नहि, पण शांतिथी चालवू, हवे जंघा सुधीना पाणीमां उतरवानी विधि कहे छे. से भिक्खू वा गामा० ० अंतरा से जंघासंतारिमे उदगे सिया, से पुवामेव ससीसोवरियं कायं पाए य पमजिज्जा २ एग पायं जले किच्चा एग पायं थले किच्चा तो सं० उदगंसि आहारिय रीएज्जा ॥ से मि. आहारियं रीयमाणे नो हत्येण हत्थं जाव अणासायमाणे तो संजयामेव जंघासंतारिमे उदए आहरियं रीइज्जा ॥ से मिक्खू वा जंघासंतारिमे उदए आहारियं रीयमाणे नो सागवडियाए नो परिदाहपडियाए महइमहालयंसि उदयसि काय विउसिज्जा, तो संजियामेव जंघासंतारिमे उदए अहारियं रीएज्जा, अह पुण एवं जाणिज्जा पारए सिया उदगाभो तीरं पाउणित्तए, तो संजयामेव उदउल्लेण वा २ कारण दगतीरए चिहिज्जा ।। से मि० उदउल्लं वा कार्य ससि. कायं नो आमज्जिज्ज वा नो० अह पु० विगोदए मे काए छिन्नसिणेहे तहप्पगारं कायं आमज्जिज्ज वा० पायविज्ज वा तो सं० गामा० इ० ते साधु विहार करी बीजे गाम जतां मार्गमा जांच डुबे तेटलं पाणी होय. तो उपरतुं शरीर मुहुपत्तिथी तथा नाभी निचेन | 13 अडधुं शरीर ओपाथी पुंजीने पाणीमां प्रवेश करे, अने पाणीमा पेठा पछी एक जलमां मुकावो, बीजो पग उचो करीने जवू, पण For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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