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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २- आचा० सूत्रमू ॥९९४॥ ॥९९४॥ माणे तो सं० उदगंसि पविज्जा ।। से मिक्ख वा० उदगंसि पवमाणे नो उम्मुग्गनिमुग्गियं करिज्जा, मामेयं उदगं कन्ने वा अच्छीसु वा नक्कंसि वा मुहंसि वा परियाव जिजा, तो. संजयामेव उदगंसि पविजा ॥ से भिक्खू वा उदगंसि पवमाणे दुबलियं पाउणिज्जा खिप्पामेव उवहिं विनिचिज वा विसोहिज्ज वा, ना चेव णं साइज्जिज्जा, अह पु० पारए सिया उदगाओ तीरं पाउणित्तए, तो संजयामेव उदउल्लेण वा ससिणग्रेण वा कारण उदगतीरे चिहिज्जा ।। से भिक्खु वा० उदउल्लं वा २ कार्य नो आमज्जिज्जा वा णो पमज्जिज्जा वा संलिहिज्जा वा निलिहिज्जा वा उबलिज्जा वा उवहिज्जा वा आयाविज्ज वा पया०. अह पु० विगोदओ मे काए छिन्नसिणेहे काए तहप्पगारं कार्य आमज्जिज वा पयाविज्ज वा तभी सं० गामा० दुइज्जिाज्जा ।। (मू० १२२) ते मुनिए पाणीमां पड्या पछी हाथ साथे हाथ, पग साथे पग के शरीरवडे कोइ पण भागमां अपकाय विगेरेनी रक्षा माटे | स्पर्श करवो नहि, तथा पाणीमां तणातो डुबकीओ मारवी नहि, कारण के डुबकी न मारवाथी कान आंख नाक मोढा विगेरेभां पाणी न भराय तेम पोते डुबी जाय नहि, पण ज्यारे पोताने डुबवा वखत आवे अने थाकी गयो होय, तो उपाधिनो मोह छाडी देवो, अथवा भारवाळी उपाधि छोडी देवी, पछी पोते जाणे के हुँ किनारे जवा समर्थ छु, त्यारे किनारे नीकळी आवे, अने | पाणी टपकता शरीरे कीनारा उपर उभो रहे, अने इर्यावही पडिकमे. पण ते मुनिए भिना शरीरने पाणी रहित करवा आमळवू घसवु दावq छांटq के तपाबु नहि, पण पाणीने पोतानी मेळे | नीतरवा देवू पण ज्यारे जाणे के पाणी नीतरी गयुं छे, भीनाश ओछी थइ गइ छे, त्यारपछी कायाने शरदी रहित करवा तडके बार For Private and Personal Use Only
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
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