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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir AS आचा पमाडे छे. (उत्तम जातीनुं मोती जे श्रीमंतोनुं मन रीझावे; तेवा मोतीने न समजनार कुकडानुं बच्चु जुवारनो दाणो समजी लेवाला सूत्रम् जतां; कदर न थवाथी फेंकी दे छे. तेज प्रमाणे क्षुद्र साधु गंभीर मूत्रना परमार्थने न समजवाथी हांसीना वाक्य तरीके मानी ले ॥६९३॥ छे.) विगेरे. अथवा बीजी प्रतिमा 'हेच्चा उवसमं अहगे पारुसियं समारुहति' पाठ छे, तेनो अर्थ आ छे के-उपशम छोडीने बहु६| ॥६९३॥ श्रुत बनेला केटलाक (बधा नहीं) कठोरताने स्वीकारे ले, तेथी, तेमने बोलावतो, अथवा पूछवा जतां कां तो, चुप रहे छे. अ-1ळू Wथवा हुंकार शब्द बोलीने माथु विगेरे हलावीने जवाब आपे छे. वळी, केटलाक ब्रह्मचर्य जे संयम रुप छे, तेमा रहीने अथवा, आचारांगमूत्र भणीने तेनो अर्थ ब्रह्मचर्य छे, तेमां रहीने आ-15 चारांगना विषयने अनुसार अनुष्ठान करवा छतां पण तेनो तिरस्कार करीने तीर्थकरना उपदेश रुप आज्ञाने कंइक माने कइक न माने; परंतु, सातागौरवनां बाहुल्यपणाथी तीर्थकरनां वचनने बहु मान आपता नथी; पण शरीरनी बकुशपणाने अवलंबे छे. (शरीरनी शोभा करवामां वीतरागनी आज्ञा उलंघे हे.) अथवा, अपवादने ओलंबीने वर्ततां उत्सर्ग मार्गनो उपदेश आपतां तेओ एकांत पकडे ळे के, 'ते उत्सर्ग मार्ग जिनेश्वरनो18 कहेलो नथी.' हवे, समजवा माटे अपवाद बतावे छे. कुज्जा भिक्खू गिलाणस्स, अगिलाए समाहिय निरोगी भिक्षु (साधु ) मांदा साधुनी समाधि माटे योग्य रीते वेयावच्च करे. जे कारणे (रोगे ) साधु मांदो होय; ते रोग छादर करवा आधाकर्मी आहार विगेरे पण लावी आपे. S AGAR For Private and Personal Use Only
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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