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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्र०-ठीक तेम हशे; पण कुशील साधुओ जेओ तीर्थकरना वचननी आशातना करे तेमने दीर्घ संसार थाय छे, तेमने आचात थवानां भविष्यना दुःखो केम बताव्यां नथी ? उ०-एज अमे बताव्यु, के जे शरीर शोभा विगेरे माटे कुशीलता सेवे छे, तेमने ६ मत्रम थवाना कडवा विषाक विगेरे सूचव्या ते, हितशिक्षानुं वचन गुरु पासे सांभळीने ते कुशीलीया साधुओ ते गुरुनेज कडवां वचन ॥६९४॥ संभळावे छे. १०-त्यारे कुशीलीआ साधु शा माटे गुरु पासे सिद्धांत सांभळता हशे? ॥६९४॥ उ०-समनोज्ञ ( लोकमां संमत ) बनीने मान मेळवी अमे जोवन गुजारी , आवा हेतुथी सिद्धांतना गुढ रहस्यना प्रश्नोना Mखुलासा माटेज शब्द शास्त्रादि (व्याकरण विगेरे ) शास्त्रो भणे छे. अथवा आ उपायवडे लोकमां मानीता थइने अमे जीवीरों, एटला माटेज केटलाक दीक्षा लइने, पछवाडे कुशीलीया बने छे. अथवा समनोज्ञ ते प्रथम दीक्षा लेतां विचारे के अमे उद्युक्त विहारी बनीने संयम जीवितवडे जीवीरों, अने दीक्षा लइ पाछ18ळथी मोहना उदयथी चारित्र बरोबर न पाळे, तेओ गौरवत्रिक (ऋदि रस साता)ना कारणे अथवा तेमांथी कोइपण एकना कारणे ज्ञानादिक मोक्षमार्गमां सारी रीते वर्त्तता नथी, तेम गुरुना उपदेशमां वर्तता नथी, अने जुदी जुदी जातनी इच्छाओथी गृद्ध थइने चित्तमां बळता गौरवत्रिकमां ध्यान राखीने विषयोमा रक्त बनी इन्द्रियोने स्थिर करवा रुप जे तीर्थकर विगेरेए पांच यमो [महा व्रतो] बतावेला के तेने बरोबर न पाळीने पोतानी मेळे पंडित मानी बनीने आचार्य विगेरेए वीतरागना शास्त्र प्रमाणे प्रेरणा कर्या ४ छतां ते कुसाधुभो ते गुरुने कडवां वचन संभळावे छे. अने बोले छ के 'आ विषयमा तमे भुं जाणो' कारण के जेवीरीते मूत्रना अर्थने व्याकरणने गणितने अथवा निमित्तने हुँ जाणुं छ. तेवी रीते बीजो कोण जाणे छे? आ Aॐॐॐ वसावाकालवाल For Private and Personal Use Only
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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