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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org सामान्यथी अभिधान छे, अनाज्ञा एटले भगवानना उपदेश विना पोतानी मेळे आचरे, ते अनाचार छे, ते अनाचारमा प्रवर्तेला के-181 & टलाक इन्द्रियोने वश थएला अने दुर्गतिमां जवानी इच्छाथी पोताना मतना अभिमान ग्रहथी बंधायला [कदाग्रही]छे, तथा उपस्थान आचा० ते बनावटी तेमनुं धर्माचरण छे, तेमां उद्यम 'करनारा' ते सोपस्थानवाला छे, तेश्रो बोले छे, के 'अमे पण प्रबजित छीए' छतां सूत्रम ॥६२८॥ - सारा धर्मना विवेकथी रहित बनीने सावध आरंभमां वर्ते छे. तेम केटलाक कुमार्गनी वासनावाळा (मिथ्यात्वी) नथी, पण आळस ॥६२८॥ & निंदा स्तंभ [मान] विगेरे (१३ काठिया) थी बुद्धि हणातां तीर्थकरना कहेला सदाचारमा निरुपस्थानवाळा(सारा धर्मानुस्थान रहित) ४. छे. एटले मिथ्याखी चारित्रना नामे अनाचार करे, अने सम्यक्त्वी जीवो प्रमादथी संयम पाळवामां खेद पामे छे. ते बन्नेने दुर्गति मळवानी छे, तेवू जाणीने गुरु कहे छे हे शिष्य ! तने तेवी दुर्गति न थाओ ! [माटे सम्यक्त्व धारण करीने प्रमाद छोडी पुरो संयम पाळ!] आq सुधर्मास्वामी पोतानी बुद्धिथी न्थी कहेता, ते कहे छे, 'एतद' उपर कहेलं (जिनेश्वरनुं छे) अथवा आज्ञा रहित निरुपस्थानपणुं छे, अने आज्ञा पालनमा सोपस्थानपणुं (चारित्र) छे, आबु तीर्थकरनुं दर्शन (मंतव्य) छे. __अथवा हवे पछी जे उपदेश कहे छे, ते तीर्थकरनें दर्शन छे, के कुमार्ग छोडीने हमेशां आचार्यनी सेवा करनारा थq ते आ&चार्यनी दृष्टिमा रहेवू ते 'तदृष्टि' छे, एटले तीर्थकरे कहेला आगममां दृष्टि राखनारो छे; तथा ते आचार्य अथवा तीर्थङ्करनी आज्ञा पालनारनी मुक्ति थाय छे, ते ' तन्मुक्ति' छे, तथा ते साधु आचार्य ने बधां कार्यमा आगळ करे तेथी पुरस्कार छे अर्थात् आचा-M 3. नी अनुमतिथी कार्य करनारो छे, तत्संज्ञी, ते तेमना ज्ञानथी उपयुक्त छे, तथा ' तन्निवेशन' एटले ते सदा गुरुकुल निवासी छे, 12 तेवाने शुं गुण थाय ते कहे छे. नामे अनाचार का, हणातां तीर्थकरना कलाक कुमार्गनी व CEनालय For Private and Personal Use Only
SR No.020011
Book TitleAcharanga Stram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1934
Total Pages186
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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