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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥४७४॥ www.kobatirth.org बीजा आचार्यो नीचे प्रमाणे कहे छेः -- (प्रथमनुं सूत्रकाव्य) बीजी रीते कहे छे:-- Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "अवरेण पुaि किह से अनीतं, किह आगमिस्सं न सरंति एगे ॥ भासन्ति एगे इह माणत्राओ, जह स अईअं तह आगमिस्सं ||१|| ” पूर्व जन्म साथे बीजा जन्मनो सबन्ध जाणता नथी, के केवीरीते अथवा क्या प्रकारे पूर्वे सुख दुःख हतुं, अने भविष्यमां केवो रीते सुख दुःख यशे ते जाणता नथी. अथवा बीजा वादीओ आम बोले छे के. आमांशुं जाणवानुं छे? जेवीरीते हमणां पूर्वना रागद्वेपथी उत्पन्न थएला कर्मवडे जीवने बन्धायलां कर्मनां फळ संसारमा भोगवां पढे छे तेमज पूर्वे पण हतुं अने भविष्यमां धनानुं छे, (तेमां वधारे शुं जाणवानुं छे?) अथवा प्रमाद्र विषय कषाय विगेरेथी कर्मो एकठां धवाथी इष्ट अनिष्ट विषयोने अनुभवता जीवो सर्वज्ञनी वाणीरूप अमृतना स्वादने न जाणनारा जेआं छे, तेमने जेम भूतकाळमां संसारमा सुख दुःख अनुभव्युं, तेवं भविष्यमां पण अनुभवशे. पण जेओ संसार समुद्री तरवावाळा छे, तेओ कर्मनुं फळ जाणे छे, ते बतावे छे ते सूत्रना बीजा काव्यमां कहे छे जे | जीवोनुं संसारमां फरी आवकुं नथी. तेओ सिद्ध छे, अथवा जेवुज जाणवानुं छे तेबुंज तेमने ज्ञान छे, तेवा सर्वज्ञो छे, तेओ अतीत (जुना) पदार्थने भविष्यना रुपपणे नथी मानता, तथा भविष्यना पदार्थने भूतकाळना रूपपणे नथी मानता, कारण के परिणतिनी विचित्रता छे, मूत्रमां "अर्थ" शब्द फरी लेवानुं कारण ए के के पर्यायरूप बदलाय छे (बाळक जुवान बुढो ए पर्याय छे अने ते For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥४७४॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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