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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kcbatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandi बदलाय छे) पण द्रव्यार्थपणे तो प्रणे अवस्थामा एकपणुंज छे (बाळपणमां अने बुट्टापणमा जीवनो भेद नथी.) आचा अथवा अतीत अर्थ ते विषय भोगादिक भोगवेलां अने भविष्य संबंधी देवांगनाना विलासने भोगववानां छे. तेने जेओ राग-18 IR॥४७५॥ IP द्वेषना अभाववाच छे तेश्रो याद करता नथी अथवा वांछता नथी.(तु शब्द विशेष बतावे छे) जेम मोहना उदयथी केटलाक पूर्वना ॥४७५॥ अथवा भविष्यना भोगोने वांछे छे, तेम सर्वज्ञ भोगोने इच्छता नथी अने तेना मार्ग (शासन) मां चालनारा पण एवाज निःस्पृही होय छे ते बताये छे, 'विहूय कप्पे.' ___एटले अनेक प्रकारे आठ प्रकारना कर्मने धोनार ते विधुत छे, अने कर्म धोबुं ते साधुनो आचार छे, तेवो कल्प पाळनार र साधु विधूत कल्पयाळो कहेवाय, अने तेज सर्वजनो अनुदर्शी कहेवाय छे, अने ते अतीन अनागत विषयसुखनो अभीलाषी न होय, 1 बळी तेने बीजा क्या गुणो होय ते कहे छे. पूर्वे बांधेलां अशुभ चीकणां कर्मनो क्षपक एटले नास करनारो छे,अथवा ते भविष्यमां नाश करनारो थशे [स्त्रमा 'निझोस [2] इत्ता' शब्द छे, तेनो अर्थ वर्तमान अने भविष्यनो लीधो छे] कर्म नाश करवाने जे मुनि उद्यम करे ते धर्मध्यान अथवा शुक्ल ध्यान ध्यानार महा योगीश्वरने संसारना सुख दुःखना । | विकल्पनो नाश थवाथी हवे शुं थशे ते बतावे छे. का अरई के आणंदे?, इत्यपि अग्गहे चरे, सव्वंहासं परिश्चज्ज आलीणगुत्तो परिवए, KARA-S EX For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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