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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ ४५९॥ चार मकारना आयुमांथी कोइ पण नाम कर्मन आठ बन्धस्थान छे. www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सामान्यथी आयुकर्मनो बन्ध एक प्रकारनो के एकनो बन्ध होय पण वे अथवा त्रण साथै बन्धावानो अभाव होवाथी एक बन्ध जाणवो (१) २३ प्रकृति तिर्यच गतिने योग्य बांधतां थाय छे. ते नीचे प्रमाणे तिर्यच गति, १ एकेंद्रिय जाति १ औदारिक तेजस कार्मण शरीरो ३ हुंड संस्थान १ वर्ण गंध रस स्पर्श ४ तिथेग गतिने योग्य अनुपूर्वी १ अगुरु लघु १ उपघात १ स्थावर १ बादर सूक्ष्ममांथी १ कोइ पण एक, अपर्याप्तक १ प्रत्येक साधारणमाथी एक १ अस्थिर १ अशुभ १ दुर्भग अनादेय १ अयश कीर्ति १ निर्माण १ एम फुल २३ छे तेनो बन्ध एकेंद्रिय अपर्याप्ताने योग्य मिध्यादृष्टिने बांधतां होय छे. (२) ते त्रीशमां पराघात अने उच्छ्वास मळी एम २५ पर्याप्ता एकेंद्रियने बन्ध जाणवो. [अपर्याप्ताने बदले पर्याप्ताने २५ प्रकृति लेवी. (३) एम आतप अथवा उयोत एक प्रकृतिनो बन्ध मेळवतां २६ थाय पण साधारणनी जम्याए प्रत्येक अने सूक्ष्मनी जग्याए बादर लेवी. (४) देवगतिने योग्य बांधतां २८ प्रकृतिनो बन्ध नीचे मुजब छे, देवगति १ पंचेंद्रिय जाति १ वैक्रिय तेजस कार्मण ऋण शरीर ३ समचतुरस्र संस्थान १ अंगोपांग १ वर्ण विगेरे चतुष्टय, ४ अनुपूर्वी १ अगुरुलघु १ उपघात १ पराघात १ उच्छवास १ प्रशस्त विहायोगति १ स वादर १ पर्याप्त १ प्रत्येक १ स्थिर अस्थिरमांथी एक, १ शुभ सुभग १ सुस्वर १ आदेय १ यशः कीर्त्ति १ अथवा अयशःकीचि निर्माण १ [टीकामां शुभ अनुभवांवी कोइ पण एक होय छे, एम लखपुं छे. टीपणमां एकली शुभ लीची For Private and Personal Use Only इलाम सुत्रम ॥४५९॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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