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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥४५८॥ www.kobatirth.org भागे निद्रा अने प्रचलन बन्ध दूर थतां चार प्रकारंना दर्शनावरणनो बन्ध रहेवायी ते श्रीजुं स्थान छे. वेदनीय कर्मनुं एक बन्ध स्थान छे. चाहे साता बांधे चाहे असाता बांधे, पण एक बीजानी विरोधी होवाथी बने साथे न बाँचे. मोहनीयकर्मनां दश बन्धस्थान छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) एक मिध्यात्व १, सोळ कषायो १६, कोइ पण एक वेद १, हास्य रतिनुं जोडकुं अथवा अरति शोकनुं एक जोडकं तेमांथी एक जोडकुं लेतां ते बे २ तथा भय १, जुगुप्सा २, मळी फुल २२ प्रकृतिनो बंध होय छे. (२) मिथ्यात्वनो बन्ध दूर थर्ता सास्वादन गुणस्थानमा २१ नो बन्ध छे. (३) मांयी मिश्र अथवा अरतिसम्यगदृष्टिने अनंतानुबन्धी चोकडी दूर दवाथी १७ प्रकारनो बन्ध छे. (४) तेमांथी देशविरति गुणस्थाने अपत्याख्याननी चोकडीना बन्धनो अभाव थवाथी १३ नो बन्ध छे, (५) तेमांथी ममत्त अप्रमत्त अपूर्वकरणमां वर्तता साधुने प्रत्याख्याननी चोकडो दूर थवायी ९ नो बन्ध छे. (६) तेमांथी हास्य विगेरेनुं जोडकुं तथा भय जुगुप्सा दूर थवाथी फक्त ५नो बन्ध अपूर्व करणना चरम [छल्ला ] समये छे. (७) तेमांथी अनिवृत्तिकरणना संख्येय भाग बीते थके पुरुष वेदना बन्धनो अभाव थतां चारनो बन्ध छे. (८) तेमांची तेज गुणस्थाने संख्येय भाग गये थके अनुक्रमे क्रोधनो क्षय थतां ३ नो वध छे. (९) माननो क्षय थतां २नो बन्ध छे [१०] मायानो क्षय थतां १नो बन्ध छे त्यार पछी अनिवृत्तिकरणना छल्ला समयमा मोनीयना बन्धनो अभाव थवाथी अवन्धक छे. For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥४५८॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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