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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobabirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir আদা ॥४६०॥ ॐॐॐॐ ] एम कुल २८ नो बन्ध थाय छे.: F (५) तेमां तीर्थकर नामकर्म उमेरवाथी २९ (६) हवे त्रीशनो बन्ध बतावे छे. देवमति, १ पंचेद्रियजाति १ बैकिय आहारक शनीर २ अंगोपांग २ तेजसकार्मण २ पहेली सूत्रम् संस्थान १ वर्णादि चतुष्क ४ अनुपूर्वी १ अगुरुलघु १ उपघात . पराघात । उच्छवास । प्रशस्तविहायो गति १ अस बादर पर्याप्त ॥४६०॥ प्रत्येक स्थिर शुभ सुभग मुस्वर आदेय यश-कीर्ति ए दशक १० तथा निर्माण १ नाम मळी फुल ३० [७] एमां तीर्थंकर नाम मेळवबाथी ३१ थाय छे. आ प्रमाणे एकेंद्रिय घेईदिय प्रेयेंद्रिय नरकगति विगेरे आश्रयी अनेक भेदे बन्धना घणा प्रकारो छे. ते कर्म ग्रंथथी जाणवा. (८) अपूर्वकरण आदि प्रण गुण स्थाने देवगति पायोग्य बन्धना उपरमथी यशःकीर्तिज फक्त बांधे छे. तेथी एक विधबन्ध के. त्यारपछी नामकर्मना बन्धनो अभाव छे. गोत्रकर्ममा सामान्यरीते उंच अथवा नीचनो एकनो पन्ध छे. उंच अने नीच बन्ने विरोधी होवाथी साये पन्धावानो अभाव #. कोन आ प्रमाणे बन्धद्वारमा लेशथी घणा प्रकारपणुं बताव्युं. सूत्रकार तेथी कहे छे के:-आ कर्म जीवे बांध्यां छे. ते सुलेखुल्लु छे, कारणके, ते प्रमाणे भोगवतां दरेकने अनुभवाय छे. मूत्रमा खल शब्द वाक्यालंकारमा छे अथवा निश्चयअर्थमांछे के, कर्म बहु प्रकारेज .] जो आ प्रमाणे छे, तो ते कर्मबन्धनने | दूर करवा शुं करवू ? ते कहे : ॐ For Private and Personal Use Only
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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