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सत्रम
॥४३३॥
ॐ:
वितेमांथी नीकळीने मुखी थाय छे अने विनवाला अने विनरहित एवा मार्गनुं ज्ञान जेने छे ते सुखेथी पार पहोंचे छे. आदि शब्दथी
जाणवू के चोर विगेरेना भवमा विवेकी माणस सुखथी ते विनमे दर करी सुखी थाय छे. तेज प्रमाणे साधु पण भावी सदा विवेकी | होवाथी जागतो रहिने बयां कल्याणने मेळवे छे मुता अने जागता सबंधी गाथाओ कहे है:॥४३३॥ जागरह णरा णि जागरमाणस्स बड़ए बुद्धी । जो सुअइ नसो धण्णो जो जग्गइ सो सया धन्नो ॥१
जागता माणसोनी बुद्धि व छे माटे हे माणसो ! तमे जागो ( अल्पनिद्रा करो.) जे मुवे छे, ते धन्यवादने योग्य नथी, पण जागतो माणस धन्यवादने योग्य छे.
सुअइ सुअं तस्स सुअं संकियखलियं भवे पमनस्स । जागरमाणस्स सुअंथिरपरिचिअमप्पमत्तस्स ॥२॥ 8 जे घणु सुवे के तेने प्रमादथी तेनुं भणेलं शंकावालु तथा भुलोवाळ याय छे, पण अप्रमादी जागता साधुनु भणेलुं स्थिर परि-18
चयत्राळ (भुल वगरन) रहे छे. नालस्सेण समं सुक्ख, न विजा सह निदया। नवेरग्गं पमाएणं, नारंभेण दशलया ॥३॥ | आळसनी साथे सुख नथी. ( आळमुने मुख न होय; ) तथा निद्रानी साथे विद्या न होय; प्रमादनी साथे वैराग्य न होय; तथा
आरंभ करनारने दया न होय. जागरिआ धम्मीणं, आहम्मीणं तु सुत्तया सेआ। वच्छाहिव भगिणाए अकहिंसु जिणो जयंतीए ॥४॥
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