SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥४३४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवने जाग सारं, अधर्मीने सुवं सारुं एवं भगवान् महावीरे वत्स देशना राजानी बेन जयंती श्राविकाने कहुं छे:सुयइ य अयगरभृओ सुअंपि से नासई अमयभूअं । होहिइ गोणभूओ नहंमि सुए अमयभृए ॥५४॥ जे अजगरनी माफक सुवे छे, तेनुं अमृत जेवं भणेलुं नाश थाय छे, तथा तेने अमृत जेवं भणेलुं नाश थतां मुडदाल- वळदीया माफक तेनुं अपमान थाय छे. आ प्रमाणे दर्शनावरणीय कर्मना उदयथी कोइक बखत कोइ साधु स्रुतो होय; पण मोक्षाभिलाषी, अने यतनावाळो होवाथी; तथा तेणे दर्शन मोहनीयरूप-निद्रा दूर करवाथी ते जागतोज छे. पण जेओ, अज्ञानना उदयथी सुतेला छे, ते अज्ञानीज खरा मुतेला छे, अने अज्ञान ते महादुःख छे, अने ते दुःख जंतुओने अहितकारी छे, ते सूत्रकार बतावे छे. लोयंसि जाण अहिया दुक्खं, समयं लोगस्स जाणित्ता, इत्थ सत्थोवरए, जस्सिमे सदा य वाय रसाय गंधाय फासा य खभिसमन्नागया भवंति (सूत्र १०६) छ जीवनीकाय संबंधी तुं दुःखने जाण; एटले अज्ञान अथवा, मोह (मूढपं) ते जीवने नरकादि भवमां दुःख आपनाएं अहितने माटे छे, अथवा तेनुं अज्ञान, तेने अहींयाज बंधने माटे, वधने माटे, तथा शरीर, अने मन संबन्धी पीडाने माटे थाय छे. (अर्थात् गुरु शिष्य कहे छे के:-आ संसारमां अज्ञानी जीवो पोते अज्ञानदशामां पापो करीने नरक विगेरेमां जाय छे, अने त्यां तथा, अहीं अनेक प्रकारनां दुःख सहे छे) ते तुं ध्यानमा राख; अने अज्ञानने छोड, हवे एम जाणवानुं फळ बतावे छे. For Private and Personal Use Only सूत्रम् ॥४३४॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy