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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आब० ॥४३२॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अने उदय तो उपशमक, अने उपशांत मोहवाळा मुनिओने पण होय छे. एथी, निद्रा प्रमादने दुरंत को छे. (दर्शनावरणीय कर्मनी नव प्रकृतिमां पांच निद्रा छे, तेमां निद्रा, प्रचला, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, अने थीणद्धि अनुक्रमे प्रमाणमां बधारे निद्रा छे, तेनुं वर्णन कर्मग्रंथमां छे, त्यांथी जोबुं. अहीं एटलं कहेवानुं छे के, परमार्थ (मोक्षनुं) लक्ष राख; अने बने त्यांधी अल्प निद्रा करवी.) अने द्रव्यथी निद्रामा सुतेो दुःख पामे छे. (जेमके, ऊंघणसी माणस वरमां आग लागतां बळीजाय छे, घरमाथी धन चोराइ जाय छे.) तेज प्रमाणे भावथी सुतेला पण दुःख पाये छे ते बतावे छे. | जह सुप्त मन्त मुच्छिय असहीणो पावए बहुं दुक्खं । तिव्वं अपडियारंपि वद्यमाणो तहा लोगो ॥ नि. २९३॥ निद्रा तेल तथा दारू विगेरेना निशाथी गांडो थलो तथा घणो मार मर्मस्थनमां पडवाथी बेशुद्ध बनेलो तथा वायु विगेरे दोषथी चक्री आani परश यएलो जोव बहु दुःख पामे छे छतां पोते ते वखते बदलो के उपाय लइ शकतो नथी तेज प्रमाणे भाव निद्रा एटले मिथ्यात्व अविरति, प्रमाद, कपाय विगेरेमां सुतेलो जीव समूह नरक विगेरेना भवनां दुःखो भोगवे छे, इवे बीजी रीते उलटा दृष्टांतथी उपदेश देवा कहे छे: एसेव य उवएसो पदित्त पयलाय पंथमाईसुं । अणुहवइ जह सचेओ सुहाई समणाऽवि तहचेव ॥नि. २१४ ॥ उपर कहेलो उपदेश जे विवेक अने अविवेक संबंधी थाय छे. ते बतावे छे जेमके सवेतन (बुद्धिमान) विवेकी आग लागतां For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥४३२॥
SR No.020010
Book TitleAcharanga Stram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages190
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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