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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org सूत्रम् ॥२६॥ अनंत भेदथी भिन्न कर्म द्रव्यनी वर्गणाओ छे, अने अहीं तेमनुं प्रयोजन छे. कारण के द्रव्य कर्मना व्याख्याननी अहीं वात चाले | आँचा। छे, अने हवे पछीनी वर्गणाओ क्रमे आवेली छे, ते शिष्यना उपर उपकारनी बुद्धिथी कहेवाय छे. . वली उत्कृष्ट कर्मवर्गणा उपर एक रुप नाखवाथी जघन्य उत्कृष्ट भेदथी भिन्न धृव वर्गणा छे, ते जघन्यथी उत्कृष्टी सर्व जी-1 ॥२६१॥18 वोथी अनंत गुणी छे, तेना उपर एक रुप नाखवाथी क्रमवडे अनंतीज जघन्य उत्कृष्ट भेदवाली अध्रुव वर्गणा छे. अध्रुव पणाथी | | अध्रुव छे, कारण के तेना विरुद्ध पक्षवाली धृवना सद्भावथी तेनुं अधृवपणुं छे. अहीं जघन्य उत्कृष्टनो भेद हमणा P] उपर कहेलो तेज छे-तै उत्कृष्टना उपर एक एकनी वृद्धि करतां जघन्य उत्कृष्ट भेदवाळी अनंतीज शून्य वर्गणाओ थाय छे, 8. अने जघन्य उत्कृष्टनो विशेष पूर्व माफक छे. तेओनो संसारमा पण अभाव छे, तेथी तेनुं नाम शून्यवर्गणा राख्यु छे. तेमा एम का छे केः-अधूववर्गणाना उपर प्रदेशनी वृद्धिए अनंतीनो पण संभव थतो नथी. एवी प्रथम शून्यवर्गणा छे. तेना उपर एकरुप विगेरेनी वृद्धिए जघन्य उत्कृष्ट भेदवाळी प्रत्येक शरीरनी वर्गणा थायछे. जघन्यथी क्षेत्रपल्योपमना असंख्येय भागना प्रदेश जेटला | गुणी उत्कृष्ट छे, तेना उपर एक एकरुपनी वृदिए जघन्य उत्कृष्ट भेदवाळी अनंतीज शून्य वर्गणाओ थाय छे. | जघन्य वर्गणाथी उत्कृष्टी असंख्य भाग प्रदेशगुणी छे, तेनो असंख्येय भाग पण असंख्येय लोकाकाशरूप छे. आ प्रमाणे बीजी शून्यवर्गणा छे, तेना उपर एकरूपादि वृद्धिए बादर निगोद शरीरनी वर्गणा जघन्यथी छे, अने क्षेत्र पल्योपमना असंख्येय भाग प्रदेशगुणी उत्कृष्टी छे, तेना उपर एकरूप विगेरेनी वृद्धिथी जघन्य उत्कृष्ट भेदवाळी त्रीजी शृन्यवर्गणा छे. जघन्यथी असंख्येय गुणी उत्कृष्टीछे, For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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