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________________ Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रश्नः-गुणाकार क्यो छे ? उत्तरः-आंगळना असंख्येय भाग प्रदेशनी राशिना आवलिका काळना असंख्येय भाग समय आचा० 15/ प्रमाणे वारंवार वर्गमूळना करवाथी असंख्येय भाग प्रदेश प्रमाणे छे, तेना उपर एक एकरूपनी दृद्धिए जघन्य उत्कृष्ट भेदवाळी सूत्रम् है सूक्ष्म निगोद शरीरनी वर्गणा छे, जघन्यथी उत्कृष्ठि आवलिकाना काळना असंख्येय भाग समयना गुणाकार जेटली छे. ॥२६॥ ॥२६॥ तेना उपर एक एक रूपनी वृद्धिए जघन्य उत्कृष्ट भेदवाळी चोथी शून्यवर्गणा छे. जघन्यथी उत्कृष्टी चोखुणो करेलो लोकनी है असंख्येय श्रेणिओ जेटली छे, अने ते प्रतरना असंख्येय भाग बराबर छे, तेना उपर एक एकरूपनी वृद्धिए जघन्य उत्कृष्ट भेदवाळी महास्कंध वर्गणा छे, जघन्यथी उत्कृष्ट क्षेत्र पल्योपमना असंख्येय अथवा संख्येयगुणा छे. आ प्रमाणे संक्षेपथी वर्गणाओ कही छे, विशेष जाणवा इच्छनारे कर्मप्रकृति नामनो ग्रंथ जोवो जोइए. हवे प्रयोग कर्म कहे ठे- बीतरायना क्षय उपशमथी प्रगट थएल वीर्यवाला आत्माथी प्रकर्षे करीने योनाय ते प्रयोग छे. ते मन वचन अने कायाना लक्षणवालो पंदर प्रकारे छे तेनी विगत. मन योगमां-सत्य, असत्य, मिश्र, तथा न सत्य न असत्य एम चार प्रकारे छे, तेमज वचन योग पण चार प्रकारे छे अने 81 काया योग सात प्रकारे छे, ते बतावे छे. (१) औदारिक (२) औदारिक मिश्र (३) वैक्रिय (४) वैक्रिय मिथ (५) आहारक (६) | आहारक मिश्र (७) कार्मण योग एम पंदर भेद थया तेमां मनयोग मनपर्याप्तिथी पर्याप्त थएला मनुष्य विगेरेने छे. वचन योग-थे | मा इन्द्रिय विगेरे जीवोने छे. औदारिक योग तिथंच तथा मनुष्यने शरीर पर्याप्तिनी पछीथी छे. त्यार पहेलां मिश्र जाणवो अथवा 9CCESCRESSIRCRACCOCI मन For Private and Personal Use Only
SR No.020009
Book TitleAcharanga Stram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1933
Total Pages204
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size11 MB
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