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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie सूत्रम् १८६॥ है। कुलकोडिसयसहस्सा पत्तीसढनव य पणवीसा । ऐगिादयावेतिइंदियचउरिदियहरियकायाणं ॥१॥ आचा० अद्वत्तरस बारस दस दउ नव चेव कोडिलक्खाई । जलयरपक्खिचउप्पयउरभुयपस्सिप्पजीवाणं ॥२॥ ॥१८६॥ पणुचीसं छव्वीसं च सयसहस्साई नारयसुराण । वारस य सयसहस्सा कुलकोडोणं मणुस्साणं ॥ ३ ॥ एगा कोडाकोडी, सत्ताणउतिं च सयसहस्साई। पंचासं च सहस्सा कुल कोडीर्ण मुणेयव्वा ॥॥ प्रमाणे आंकडामा १९७५००००००००००० थाय के आ बधा कुलनो संग्रह छे. मरूपणा द्वार समाप्त यं. हवे लक्षण ? द्वार कहे छे. दसणनाणचरित्ते चरियाचरिए अ दाणलाभे अ । उवभोगभोग वीरिय, इंदियविसए य लद्विय ॥१५६ ।। उवओगजोगअज्झवसाणे वीसुं च लद्धि ओदइया (णं उदइया) । अझ विहोदय लेसा, सन्नुसासे कसा-2 एअ॥ १५७॥ दर्शन, ते सामान्य उपलब्धि (माप्ति ) रूप छे, तेमां चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अबधि दर्शन, अने केवळदर्शन, एम चार प्रकारे छे. ज्ञान ते मति, श्रुत, अवधि मनापर्यय अने केवळ एम पांच प्रकारर्नु छ, ते ज्ञान पोतानो तथा परनो परिच्छेद करनार । जीवन परिणाम हे, ते ज्ञानावरणीयादिक कर्म जवाथी स्पष्ट तत्वनो परिच्छेद करे छे चारित्र ते, सामायिक, छेदोपस्थापनीय, 1 For Private and Personal Use Only
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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