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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥१८५॥ www.kobatirth.org मनुष्योपण एव त्रण योनिवाळा छे. देवोमां स्त्री तथा पुरुष एम वेज योनि छे, तथा मनुष्य योनी बीजीरीने त्रण प्रकारनी छे. ते आ प्रमणे (१) कूर्मोनता, तेमां अर्हद (तीर्थंकर) चक्रवर्ती, विगेरे सारा माणसोनीज उत्पत्ति थाय छे. (२) शंखावर्ता, से चक्रवतींना स्रो रत्ननेज होय छे, तेपां फक्त प्राणीनी उत्पत्ति संभवे छे, पण तेमां नत्र महिना रहीने गर्भ पाकवानी क्रिया थती नथी; (३) 'वंशी पत्रा' ते योनि माकृत (साधारण) मनुष्योने होय छे, तथा बीजा ऋण भेद निर्मुक्तिकार बतावे छे. ते आ प्रमाणे 'अंडज' 'पोतज' अने 'जरायुज' तेमां पक्षी विगेरे अंडज कडेवाय तथा वल्गुली ( बकरा. हरण ) हाथी बच्चुं विगेरे पोतन छे अने | गाय भैंस नळद मनुष्य इत्यादि जरा युज कहेवाय छे. आ प्रमाणे गति त्रसो वे व्रण, चार, पांच इन्द्रियोना भेदवाळा छे; आ प्रमाणे योनी विगेरे भेदrt tej fनरुपण धयुं, हवे ते दरेक योनिनो संग्रह नीचेनी गाथाओमा कर्यो छे, ते बतावे छे. | पुढ विदगअगणिमारुयपत्तेयनिओयजीव जोणीणं । सत्तग सत्तग सत्तग सत्तग दल चोद्दस य लक्खा ॥१॥ विगादिए दो दो चउरो चउरो य नारयलुरेसु । तिरियाण होंति चउरो चोदस मणुआण लक्खाई ॥२॥ सातलाख पृथिवीकाय यांनि, सातलाख जलकाय योनि, सातलाख अग्निकाय; सातलाख पवन, दशलाख प्रत्येक वनस्पति अने चौदलाख साधारण वनस्पतिकायनी योनि छे. ॥ १ ॥ विकलेन्द्रिय (बे, त्रण, चार इन्द्रियनाळा ) नी बब्बे लाख योनि छे चार लाख नारकीनी तथा चार लाख देवयोनि छे, चार साख तिर्यच पंचेद्रिनी भने चौद लाख मनुष्यनी योनि छे, एवीरीते वधी मळीने चोर्याशी लाख योनि जोवोनी थाय छे; हवे कुलनां परिमाण कहे छे. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम ॥१८५॥
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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