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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥ १८४॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवो पर्याप्ता, अने अपर्याप्ता एम वे प्रकारे जाणवा, तेमां पर्याप्ति छ प्रकारे छे ते पूर्वे कही गया छीए; वे बडे यथायोग्य तैयार थ येला ते पर्याप्ता, अने तेनाथी जे विपरीत ते अपर्याप्ता; अने ते अंतमूहर्तकाळधी अपर्याप्ता जाणत्रा. हवे बीजा उत्तर भेदो कहे छे. तिविहा तिविहा जोणी, अंडापोअअजराउआ चेव । बेइंदिय तेइंदिय, चउरो पंचिंदिया, चेत्र ॥१५५॥ दारं अहिं शीत, उष्ण भने शीतोष्ण तथा सचित अचित अने मिश्र तथा संवृत विद्वत तथा मित्र तथा स्त्री पुरुष अने नपुंसक एम त्रण त्रण भेदथी ऋण त्रण योनीनां जोडका घणा छे. ते बघानो संग्रह करवाने पाटे गायामां ये बखत तिविद्दा लीधुं तेमां नरक | जीवोनी पहेली ऋण भूमिमां शीत योनि छे, अने चोथीमां उपर शीत नीचे उष्ण छे, त्यारपछीनी त्रण भूमिमां उष्ण योनि छे पण मिश्र अथवा शीत नथी गर्भथी जन्म पामनारा तिर्येच तथा मनुष्योनी अने वथा देवोनी शीतोष्ण योनी छे. पण शीत तथा उष्ण नथी बेइन्द्रिय, ऋण, चार, पांच इन्द्रिय, मळमुत्र विगेरेमां उत्पन्न थनारा तिर्यच तथा मनुष्यनी शीत उष्ण अने मिश्र एम ऋण प्रका रनी योनी छे. नारक अने देवोनी एक अचित्त योनि छे. सचित्त तथा मिश्र होती नथी. वे इन्द्रियादि संमूर्च्छनन पंचेन्द्रि तिच मनु धनी सचित अचित्त, अने मिश्र एम ऋण प्रकारे योनी छे, गर्भधी जन्मेलां तिर्यच तथा मनुष्यनी मिश्रयोनि समजत्री तेमज | नारकी तथा देवनी संत योनि छे. पण असंवृत तथा मिश्र नहिं; वे त्रण चार इन्द्रियवाळा तथा संमूर्च्छन पंचेन्द्रिय तथा मनुध्यनी विद्रुत योनि छे, पण बीजी नथी, गर्भ व्युत्क्रान्तिक तिर्यच तथा मनुष्यनी संत विद्वत योनि छे, एटले मिश्र योनि समजवी पण संवृत तथा विन नारकी जीवो केवळ नपुंसक योनिबाळा छे तिर्यंचो स्त्री पुरुष तथा नपुंसक एम त्रणे योनित्राळा छे. For Private and Personal Use Only सूत्रम ॥ १८४॥
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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