________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
[ ५७
प्रथम अध्ययन तृतीय उद्देशकः ]
इसका अर्थ यह है कि विभिन्न शस्त्रों द्वारा परिणत अचित्त जल का ग्रहण करना कर्मबन्धन का कारण नहीं है ।
संस्कृतच्छायाशब्दार्थ -
काय आदि की हिंसा करते हैं उन्हें केवल प्राणातिपात का ही दोष नहीं लगता लेकिन अदत्तादान का भी दोष लगता है । यह सूत्रकार आगे बताते हैं:
अदुवा दिन्नादा
(२६)
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
(— अथवा अदत्तादानम् ।
- अदुवा=अथवा | अदिन्नादाणं अदत्तादान भी होता है ।
भावार्थ - काय की हिंसा करने वालों को अदत्तादान (चोरी) का दोप भी लगता है (क्योंकि वे हिंसक अष्काय के जीवों के शरीर को उनकी आज्ञा लिये बिना ही ग्रहण करते हैं ) ।
विवेचन - अप्काय के जन्तुओं ने जो शरीर धारण कर रखे हैं उन शरीरों को, उनकी आज्ञा के बिनो ले लेना चोरी नहीं तो क्या है ? जैसे कोई मनुष्य दूसरों की वस्तुओं को उनके स्वामी की आज्ञा के बिना ग्रहण करता है तो वह चोर कहा जाता है, ठीक उसी तरह अष्काय के जीवों के शरीरों को बिना उनकी आज्ञा के हरण करना चोरी करना ही है। कोई यों कहे कि कूप, तालाव सरोवर इत्यादि जिसके अधिकार में हैं उसकी आज्ञा लेकर उनका जलपान किया जाय तब तो अदत्तादान नहीं है क्योंकि स्वामी की श्राज्ञा ली गई है, तो उनका यह कथन योग्य नहीं है। क्योंकि काय के जीवों के शरीर का मालिक
काय के जीव के अतिरिक्त अन्य नहीं हो सकता । परमार्थ दृष्टि से कोई किसी दूसरे जीव का स्वामी नहीं हो सकता है । यहाँ यह प्रश्न उठ सकता है कि गौदान आदि का सर्वलोक प्रसिद्ध व्यवहार इससे टूट जायगा क्योंकि गाय का स्वामी गाय के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं तो देने वाला कैसे गौदान कर सकेगा ? आचार्य फरमाते हैं कि भले ही यह व्यवहार टूटे । वस्तुतः ऐसी ही वस्तु देने योग्य है जिससे स्वयं को दुःख न हो, जो अन्य के लिये दुःख का कारण न हो और देने वाले और लेने वाले दोनों के लिये एकान्त उपकारक हो । कहा है-यत्स्वयमदुःखित स्यान्न च परदुःखे निमित्तभूतमपि । केवलमुपग्रहकरं धर्मकृते तद् भवेद्देयम् । अतः सिद्ध हुआ कि अकाय की हिंसा करने वालों को प्रदत्तादान का पाप भी लगता है।
कम्पति ऐ, कम्पति पाउँ, अदुवा विभूसाए, पुढो सत्येहिं विउन्ति एत्थ वि तेसिं नो निकरणाए (२७)
संस्कृतच्छाया - कलग्ते नः, कल्पते नः पातुमथवा विभूषार्थम्, पृथक् शस्त्रैः व्यावर्त्तयन्ति एतस्मिन्नपि तेषां नो निकरणाय ।
शब्दार्थ - कापति - हमको कल्पता है । पाउं पीने के लिए । अदुवा=अथवा | विभूस ए = प्रक्षालनादि विभूषा के लिये । पुढो सत्थेहिं = विविध प्रकार से शस्त्रों से । विउट्टन्ति =
1
For Private And Personal