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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ५७६ ] [प्राचाराग-सूत्रम् जो साधक शरीरमात्र से हलन-चलन करता है लेकिन समाधिमरण से विचलित नहीं होता है और धर्मध्यान, शुक्लध्यान में मन लगाए रहता है वह गर्हणीय नहीं है। अतः इङ्गितमरण के श्राराधक साधक को चित्त की समाधि पर विशेष लक्ष्य देना चाहिए। अभिक्कमे पडिकमे, संकुचए पसारए । कायसाहारणट्ठाए इत्थं वावि अचेयणो ॥१५॥ परिक्कमे परिकिलन्ते, अदुवा चिट्टे अहायए । ठाणेण परिकिलन्ते निसीइजा य अंतसो ॥१६॥ संस्कृतच्छाया-अमिकामेत् प्रतिक्रामेत् संकोच येत्प्रसारयेत् । कायसाधारणार्थमत्रापि अचेतनः ॥५६।। परिक्रमेत् परिक्लान्तोऽथवा तिष्ठेत् यथायतः। स्थानेन परिक्लान्तो निषीदेश्चान्तशः ॥१५ ।। शब्दार्थ-अभिक्कमे सन्मुख जावे । पडिक्कमे वापस लौटे । संकुचए=संकुचित करे। पसारए फैलावे । काय साहारणहाए-शरीर की सुविधा व समाधि के लिए ऐसा करे । वावि अथवा । इत्थं यहाँ भी । अचेयणो अचेतन की तरह हलन-चलन रहित हो॥१५॥ परिकिलन्ते बैठे २ थक जाने पर । परिकमे-थोड़ा भ्रमण करे । अदुवा अथवा। चिट्ठ-खड़ा रहे । अहायए=3 इच्छा के अनुसार आसन करे । ठाणेण-खड़ा रहने से । परिकिलन्ते श्रान्त होने पर अंतसो= अन्त में । निसीइजा-बैठ जावे । भावार्थ-इंगितमरण की आराधना करने वाला नियमित प्रदेश में सन्मुख जा सकता है और वापस लौट सकता है । वह अपने अंगों को संकुचित कर सकता है और उन्हें फैला सकता है। शरीर की सुविधा और समाधि के लिए वह हलन-चलन कर सकता है । यदि विशेष सामर्थ्य हो तो यहां भी पादपोपगमन की तरह अचेतन काष्ठ की तरह निश्रष्ठ रहा जा सकता है ॥१५॥ ऐसा सामर्थ्य न होने पर बैठे-बैठे खेद होने पर नियत भूमि में गमनागमन कर सकता है, अथवा खड़ा हो सकता है या इच्छा के अनुसार अन्य आसन कर सकता है । खड़ा-खड़ा थक जाने पर बैठ सकता है या लेट सकता है॥१६॥ विवेचन-इङ्गितमरण में हलन-चलन की छूट होती है अतएव जब मुनि सोया-सोया या बैठाबैठा ग्लानि का अनुभव करने लगे तो उसे मर्यादित-प्रदेश में सन्मुख जाना और वापस लौटना कल्पता है। नियत देश में गमनागमन करने की उसे छूट होती है। यह अपनी समाधि के अनुसार भुजा आदि अङ्गों को संकुचित भी कर सकता है और फैला भी सकता है । बैठे २ थक जाने पर वह नियमित प्रदेश में थोड़ा २ भ्रमण भी कर सकता है, खड़ा रह सकता है और इच्छानुसार श्रासन से स्थित हो सकता है। ऐसा करने से श्रान्त होने पर लेट सकता है या बैठ सकता है। उसे जिस प्रकार समाधान मालूम हो For Private And Personal
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
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