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२८. ]
[ आचाराङ्ग-सूत्रम्.
जैसे - मल्लिनाथ भगवान् ने विवाह के लिए आये हुए छः राजकुमारों को अपने अवधिज्ञान के द्वारा उनके पूर्वभवों को जानकर उन्हें प्रतिबोध देने के लिए कहा कि "हमने जन्मान्तर में एक साथ ही संयम मार्ग अंगीकार किया था। उसके फलस्वरूप देवलोक के जयन्त विमान में हमने जन्म लिया था, क्या वह सब भूल गये ?" इस प्रकार मल्लिस्वामी के पूर्वभव का कथन करने से उन राजपुत्रों को अपने विशिष्ट दिगागमन का ज्ञान हो गया ।
इस प्रकार तीन साधनों के द्वारा श्रात्म-ज्ञान होने पर जीव को यह स्पष्ट प्रतीति हो जाती है कि "मैं श्रमुक दिशा - विदिशा से आया हूँ। मेरी आत्मा औपपातिक है । यह आत्मा एक दिशा से दूसरी दिशा में संचरण करती है । यह आत्मा सब द्रव्य और भाव दिशाओं में गमनागमन करती है । जो सर्वत्र गमनागमन करता है और जो सब दिशा-विदिशा से आया हुआ है, वही मैं हूँ ।"
कहीं २ 'अणुसंचर' के स्थान पर अणुसंसरइ पाठ मिलता है । इसका अर्थ यह है कि'जो दिशा - विदिशा के गमनागमन का स्मरण करने वाला है, वही मैं हूँ ।'
सूत्रकार ने 'सोऽहं' शब्द से यह सूचित किया है कि यह जीव विविध योनियों में जन्म लेकर विविध अवस्थाओं का अनुभव करता है तदपि वह एक है । वह सब विभिन्न रूप उस अखण्ड श्रविनाशी द्रव्य की पर्यायमात्र हैं। इससे आत्मा की द्रव्यार्थिक नय से नित्यता और पर्यायार्थिक नय से अनित्यता का कथन किया गया है ।
यद्यपि शुद्ध निश्चय नय की अपेक्षा आत्मा जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त श्रखण्ड, ज्योतिर्मय और निरञ्जन - निराकार है तदपि व्यवहार नय की अपेक्षा कर्मों के संयोग से इसे शरीर के साथ सम्बद्ध होना पड़ता है और इसी से उसके जन्म-मरण का व्यपदेश होता है। कर्म-सम्बद्ध आत्मा पर कर्मों का असर हुए बिना नहीं रह सकता श्रतएव श्रात्मा भवान्तर में गमनागमन करने वाली, अखर्वगत, अमूर्त, अविनाशी, शरीरमात्र व्यापी और कर्म फल का उपभोग करने वाली कही जाती है।
जो इस प्रकार के श्रात्मस्वरूप को समझ लेता है वही सच्चा आत्मवादी है यह बताने के लिए सूत्रकार कहते हैं:
सेायावादी लोयावादी कम्मावादी किरियावादी (सू. ५ )
संस्कृतच्छायास आत्मवादी, लोकवादी, कर्मवादी, क्रियावादी ।
शब्दार्थ — से = वह । श्रायावादी - आत्मवादी । लोयावादी-लोक को मानने वाला । कम्मावादी - कर्म को मानने वाला । किरियावादी - क्रिया को मानने वाला है ।
भावार्थ — जो आत्मा के उक्त स्वरूप को जानता है वही सच्चा आत्मवादी है । जो श्रात्मवादी है सच्चा लोकवादी है । जो श्रात्मा और लोक के स्वरूप को जानता है वही कर्मवादी है और जो कर्मवादी है वही सच्चा क्रियावादी है ।
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