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पञ्चम अध्ययन पञ्चमोद्देशक ]
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उनको लिए क्या नहीं हो सकता है। अर्थात् मोह सब कुछ करा सकता है। मोह के उदय से यति को भी शंका, कांक्षा, वितिगिच्छा हो सकती है । श्रागम में कहा है:
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श्रत्थि भंते ! समणा वि निग्गथा कंखामोहणिज्जं कम्मं वेदेति ? हंता अस्थि । कहन्नं समणा वि निग्गंथा कंखा मोहणिज्जं कम्मं वेयंति ? गोत्रमा ! तेसु तेसु नाणन्तरेसु, चरित्तन्तरेसु संकिय कंखिय विइगिच्छ्रासमावत्रा भेयसमावत्रा कालुससमावन्ना, एवं खलु गोयमा ! समणा विनिग्गंथा कंखामोहिणिज्ज कम्मं वेदेति तत्थालंबणं तमेव सच्चं सिंकं जं जिणेंहिं पवेइयं । से गं भंते एवं मणं धारेमाणे श्राणाए राह भवइ ? हंता गोत्रमा ! एवं मण धारेमाणे आणाए राहए भवइ ।
इस गम वाक्य में श्री गौतमस्वामी भगवान् महावीर से प्रश्न करते हैं कि हे भगवान् ! श्रमण निर्ग्रन्थ कांक्षामोहनीय कर्म का वेदन करते हैं ? भगवान् फरमाते हैं कि हाँ गौतम ! वेदन करते हैं । फिर गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं कि हे भगवान् ! वे कैसे वेदते हैं ? भगवान् फरमाते हैं हे गौतम! ज्ञान के विषय
और चरित्र के विषय में शंका, कांक्षा, विचिकित्सा करते हुए, भेद को प्राप्त करके कलुषित परिणाम वाले बनते हैं । हे गौतम! इस प्रकार वे कांक्षामोहनीय का वेदन करते हैं। उनके लिए यह अवलम्बन है कि वे यह विचारें कि जो जिनेश्वरों ने कहा है वही निश्शंक है - सत्य है । इस पर गौतमस्वामी पुनः प्रश्न करते हैं कि हे भगवान् ! इस प्रकार विचारने वाला आज्ञा का आराधक होता है ? भगवान् फरमाते हैं कि हाँ गौतम ! ऐसा मन में दृढ़ विश्वास रखने वाला आज्ञा का आराधक होता है ।
इससे यह फलित होता है कि यति को भी यह विचिकित्सा हो सकती है और उसका निवारण करने का उपाय भी इसमें बता दिया गया है। और भी यह विचारना चाहिए कि:
वीतरागा हि सर्वज्ञा मिथ्या न ब्रुवते क्वचित् । यस्मात्तस्माद्वचस्तेषां तथ्यं
भूतार्थदर्शनम् ॥
अर्थात् वीतराग और सर्वज्ञ कदापि मिध्या भाषण नहीं कर सकते क्योंकि मिथ्याभाषण का कोई कारण ही नहीं है ( मिथ्याभाषण के कारण दो ही हैं - ( १ ) अज्ञान (२) राग-द्वेष परिणाम ) । इस कारण जिनेश्वर के वचन सत्यार्थ के प्ररूपक हैं । साधन को यह दृढ़ विश्वास रखना चाहिए। यह श्रद्धा भवसागर से पार करने वाली है।
ससि णं समन्नस्स संपव्वयमाणस्स समियंति मन्नमाणस्स एगया समिया होइ १ समियंति मन्नमाणस्स एगया असमिया होड़ २ असमियंति मनमाणस्स एगया समिया होइ ३ असमियंति मन्नमाणस्स एगया असमिया sts ४ समिति मन्नमाणस्स समिया वा असमिया वा समिया होइ उवेहाए ५ समिति मन्नमाणस्स समिया वा असमिया वा असमिया होइ उवेहाए ६ ।
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