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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir विषयानुक्रमणिका १ शस्त्रपरिज्ञा अध्ययन १ प्रथम उद्देशक:विशिष्टसंज्ञा का अभाव, पूर्वपर-भवज्ञान, अात्मसिद्धि, आत्म-लोक-कर्मक्रियावादित्व, मतिज्ञान से आत्म-सद्भाव-ज्ञान, क्रियापरिणाम, अपरिज्ञातकर्मा का अपाय-प्रदर्शन, योनिभ्रमण, परिज्ञावर्णन, जीवनादि के लिए आरम्भ, कर्मारम्भपरिज्ञाता मुनि । २ द्वितीय उद्देशक: ४१ ४८ पृथ्वीकाय की हिंसा, पृथ्वीकाय की सजीवता, पृथ्वीसमारम्भ-प्रवृत्ति और अहितादि फल-प्राप्ति, पृथ्वीदण्डविरत मुनि । ३ तृतीय उद्देशक: ४६५६ अनगारस्वरूप, निष्क्रमण श्रद्धा की रक्षा, महापुरुषाचीर्ण मार्ग, अपकाय संयम; अभ्याख्यान व्याप्ति, समारम्भ में दोषप्रदर्शन, उदकजीवोपदेश, अप्काय-शस्त्र, अपकाय-परिभोग में अदत्तादान, अन्यमत, अन्यागमों की असारता, अपकायवध-विरत मुनि । ४ चतुर्थ उद्देशक: अग्निकाय-अभ्याख्यान व्याप्ति, अग्निकाय की अहिंसा और संयम की व्याप्ति, दृष्टपूर्वता, रन्धनादि के लिए हिंसा, अग्नि का असमारम्भ, अन्यतीर्थिकों का अयथावादित्व, नानाप्राणियों की हिंसा, अमिसमारम्भ ज्ञाता मुनि । ५ पञ्चम उद्देशक: वनस्पति का प्रारम्भन करने वाला मुनि, गुण और श्रावत की एकता, शब्दादि विषयों की सार्वत्रिकता, शब्दादि विषयों में आसक्ति से अनाज्ञाकारित्व, असंयतत्व और गृहस्थत्व, अन्यतीर्थिकदशा, वनस्पति में जीवसिद्धि, प्रारम्भज्ञाता मुनि । ६ षष्ठ उद्देशक: ७४ ७६ अण्डजादि त्रसभेद, अज्ञानी का भवभ्रमण, संसार की दुःखमयता, वध्यमान को होने वाला दुःख, अन्यतीर्थिकस्वरूप, त्रसवध के कारण, प्रारम्भ परिज्ञाता मुनि । ७ सप्तम उद्देशक: ८० ८५ वायुसमारम्भनिवृत्ति, अन्तर्बहिनि व्याप्ति, वायुजीवरक्षण में मुनित्व, For Private And Personal
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
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