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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir धन बजाते हैं । आप अन्धश्रद्धालु नहीं है । आपने अनेक संस्थाओं में दान दिया है और समय-समय पर देते रहते हैं । आपके यहाँ गया हुआ व्यक्ति खाली नहीं लौटता। आपने इस कार्य में ७५०) साढे सातसौ रुपये प्रदान किये हैं। (४) राव साहेब किशनलालजी नन्दरामजी पारख, येवला:-आप येवला के प्रतिष्ठित एवं राजमान्य सद्गृहस्थ हैं । उच्च पदाधिकारी होते हुए भी निरभिमानी हैं। धर्म के प्रति आपको बड़ा अनुराग है । साधु-सन्तों की सेवा और सत्संग की ओर श्रापकी अभिरुचि है। आपकी धर्मपत्नी भी सुशीला और उदारचेता है। आपके सुपुत्र भी आज्ञाकारी और सेवाप्रेमी हैं। राव साहब प्रकृति से सरल और हँसमुख्न हैं। आपने इस कार्य में ७५०) साढे सातसौ रुपये प्रदान किये हैं। (५) सेठ हरखचन्दजी माणकलालजी रांका, उज्जैन:-श्राप उज्जैन के प्रतिष्ठित और धर्मपरायण श्रावक हैं । आपका जन्म वि० सं० १६४२ में हुआ । साधारणस्थिति के परिवार में जन्म लेकर भी आपने अपने व्यावहारिक कौशल से अपना गौरवमय स्थान बना लिया । आपने अपने परिश्रम और कौशल से द्रव्योपार्जन किया । धार्मिकभावनाएँ आपमें बाल्यकाल से ही भरी हुई हैं। गरीबों की सहायता करने में आप पीछे नहीं रहते। आपके सुपुत्र श्री माणकलालजी सा. धर्मप्रेमी और उत्साही युवक हैं। समाजसेवा के कार्यों में उनका मुख्य हाथ रहता है । आपको धार्मिक थोकड़ों का अच्छा अभ्यास है। शिक्षण और शिक्षा-संस्थाओं के प्रति अापका प्रेम प्रशंसनीय हैं। आपको आयुर्वेद के प्रति रुचि है इसलिए आपने अपने यहाँ हजारों की कीमत की औषधियाँ रख रक्खीं हैं और गरीबों को बिना किसी मूल्य के प्रदान करते हैं। साधु-साध्वियों की सेवा करना अपना कर्त्तव्य समझते हैं। आप इस समिति के मंत्री हैं। आपने रु० ५००) प्रदान किये हैं। (६) श्रीमान् पुनमचंदजी सा. रांका, नासिकः-आप नासिक के अग्रगण्य और धर्मप्रेमी सजन है। आपके पिता श्री हंसराजजी सा. बड़े धर्मश्रद्धालु, सेवाभावी और सरल प्रकृति के हैं । आप चार भाई है । एक भाई वकालात करते हैं, एक डाक्टर हैं, एक प्रख्यात व्यापारी हैं। आपका सारा परिवार संस्कारी और धर्मप्रेमी है । आप बड़े निर्भीक और सुधारक हैं । अनेक सभा-सोसाइटियों के संचालक और अग्रसर हैं । आपने इस कार्य में ५००) प्रदान किये हैं। (७) सेठ भीखमचन्दजी केवल चन्दजी ललवानी, मनमाड़ा-आप मनमाड़ के प्रतिष्ठित श्रीमान् हैं । आपका धर्मप्रेम और सेवाभाव प्रशंसनीय हैं । आपने अपने स्वर्गीय सुपुत्र की स्मृति में इस ग्रन्थ-प्रकाशन के लिए तीनसौ रुपयों की सहायता समिति को प्रदान की है। उक्त सज्जनों की उदारता के कारण यह विशाल ग्रन्थ-प्रकाशित हो सका है इसलिए समिति की ओर से हम इन सबका आभार मानते हैं और धन्यवाद देते हैं। यद्यपि इन दान-दाताओं की सहायता से हम इस ग्रन्थ को अमूल्य भी वितरित कर सकते थे परन्तु ऐसा करने से ग्रन्थ-गौरव कम होता है और उसका दुरुपयोग होता है इसलिए इसका मूल्य ११)रु० रखा गया है। आज के युग की मॅहगाई, प्रकाशन-साधनों की महर्षता, कागज की दुर्लभता और ग्रन्थ की विशालता के कारण इतना मूल्य रखना पड़ा है। ग्रन्थविक्रय से प्राप्त द्रव्य के द्वारा अन्य साहित्यप्रकाशन-प्रवृत्ति समिति की ओर से होती रहेगी। For Private And Personal
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
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