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श्रम किया है उसके लिए हम उनके अत्यन्त आभारी हैं । प्रस्तुत संस्करण को प्रकाशित करने के लिए जिन सद्गृहस्थों ने समिति को आर्थिक सहायता प्रदान की है उनका यहाँ साभार उल्लेख करना हम अपना कर्तव्य समझते हैं। इन उदार सज्जनों की उदारता से ही इस विशाल ग्रन्थ को प्रकाशित करने में हम समर्थ हुए हैं। उनका अत्यन्त संक्षिप्त परिचय यहाँ दिया जाना अनुचित नहीं होगाः
श्रीमान् सेठ घासीलालजी पांचूलालजी उजन:-आपने इस ग्रन्थ को प्रकाशित करने के लिए ५००० पाँच हजार रूपये जितनी बड़ी रकम समिति को दान कर अपनी उदार-भावना का परिचय दिया है। आप उज्जैन के प्रतिष्ठित और सर्वमान्य श्रीमन्त हैं। आपने अपने बुद्धि कौशल और पुरुषार्थ से ही लाखों की सम्पत्ति उपार्जित की है। आप न केवल लक्ष्मी का उपार्जन करना ही जानते हैं अपितु उसका शुभकार्यों में सदुपयोग भी करते रहते हैं। लक्ष्मीसम्पन्न होते हुए भी श्राप निरभिमानी हैं। आपका हृदय अत्यन्त सरल, उदार, गम्भीर और कोमल है। राज्य, पंचायत और प्रजा में आपको अच्छा सन्मान प्राप्त है। धर्मकार्यों में आपकी अत्यन्त रुचि है । नयापुरा संघ के तो आप स्तम्भ हैं । कुँवर पांचूलालजी अपने सुयोग्य पिता के सुयोग्य पुत्र है । आप अच्छे विचारों के समाजसेवी युवक हैं। आपमें सादगी, नम्रता और विवेक की जो मात्रा दृष्टिगोचर होती है वह प्रायः बहुत कम श्रीमन्त-पुत्रों में पाई जाती है। पारिवारिक दृष्टि से भी यह सम्पन्न कुटुम्ब है। समस्त कुटुम्ब संस्कारी और धर्मभावना वाला है। सेठ सा. के शर्राफी और कपड़े का बड़ा व्यवसाय है। सेठ सा. की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि आप दान देकर बदले में कीर्ति की चाह नहीं करते । प्रसिद्धि और कीर्ति-लोलुपता से आप सदा बचते रहते हैं। बड़ी-बड़ी रकम दान करने पर भी समाचार पत्रों में प्रसिद्धि के लिए नहीं छपवाते।
(२) श्रीमान् सेठ रतनलालजी सा., बदनावर:- आपने इस कार्य में २५००) 'पञ्चीस सौ रुपयों की महती उदारता बताई है । आप स्व. सेठ भग्गाजी के सुपुत्र हैं । श्राप मूलतः मध्यभारत के बिडवाल ग्राम के निवासी है । अब बदनावर रहते हैं । आपका मुख्य व्यवसाय इस समय धार में है । आपके कमीशन और अनाज का व्यवसाय है। आप व्यापार कला में बड़े कुशल हैं। आप लक्ष्मी का उपार्जन करने में जैसे कुशल हैं वैसे दानवीर भी हैं। आपको लक्ष्मी का तनिक भी मोह न हो ऐसा लगता है। लक्ष्मी श्राते ही आप उसे सत्कार्य में खर्च करना ही अपना धर्म समझते हैं। आप जिस स्थिति में हैं उस स्थिति में हृदय की इतनी अधिक उदारता विरल ही दृष्टिगोचर होती है। आपके छोटे भाई मगनलालजी ने दीक्षा धारण करने की तीव्र भावना व्यक्त की तो आपने हजारों रुपयों लगाकर अपनी ओर से दीक्षा महोत्सव किया । स्वर्गीय पूज्यपाद प्रवर्तक श्री ताराचन्द्रजी-म: जब धार पधारे तो आपने अन्तिम समय तक तन-मन-धन से सेवा बजाई । हजारों रुपये व्यय किये । उदारता श्रापका विशेष और मुख्य सद्गुण है। आप में ही यह उदार-भावना हो ऐसा नहीं अपितु आपकी धर्मपत्नी भी आपसे अधिक नहीं तो कम तो किसी भी तरह नहीं है। वह सुशीला, पतिपरायणा और सुयोग्य गृहिणी हैं। इस उदार दम्पति के गुण इनकी सन्तान में भी इसी तरह अंकुरित और विकसित हुए हैं । प्रस्तुत ग्रन्थ जब तय्यार हो रहा था उसी समय से आपकी भावना और आकर्षण इस ओर हो गया था। इस कार्य में सर्वप्रथम आपने ही अपनी उदारता व्यक्त की थी। अतः इस प्रकाशन का श्रेय बहुत अंशों में आपको है। . (३) सेठ जुगराजजी 'सा. श्रीश्रीमाल, येवला:-आप येवला की प्रसिद्ध फर्म नवलमल पुनमचन्द के मालिक हैं। आप वहाँ के प्रतिष्ठित और अग्रगण्य श्रावक हैं । स्वधर्मीबन्धुओं की सेवा और सहायता करने की ओर अापका विशेष ध्यान रहता है। आप उदारचेता गृहस्थ हैं। धर्म की ओर आपका पूरा २ लक्ष है । श्राप विवेकशील हैं। बारित्रसम्पन्न मुनिराजों और महासंतियों की आप खूब सेवा
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