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[ श्राचाराङ्ग-सूत्रम्
स्वस्थ होकर समता-योग की साधना करता हुआ चित्त को साधना में स्थिर करता है वही सच्चा वीर है । वही कर्मों का विदारण करने वाला सच्चा शूरवीर है ।
सफायासमा, निव्विंद नंदिं इह जीवियस्स । मुणी मोणं समायाय धुणे कम्मसरीरगं । पंतं लूहं सेवंति वीरा सम्मत्तदंसिणो, एस मोहंतरे मुणी तिरणे, मुत्ते, विरए वियाहि त्ति बेमि ।
संस्कृतच्छाया - शब्दान् स्पर्शानध्यासमानो निर्विन्दस्व नन्दिमिह जीवितस्य । मुनिर्मोनिं समादाय धुनयात् कर्मशरीरकम् । प्रान्तं रूक्ष सेवन्ते वीरा सम्यक्त्वदर्शिनः । एष श्रोघन्तरो मुनिस्तीर्णे मुक्तो विरतो व्याख्यातः इति बवीमि ।
शब्दार्थ — सद्दे शब्दों को । फासे स्पर्श को । अहियासमा सहन करते हुए । इह = इस | जीवियस्स=असंयमित जीवन के । नंदि-प्रमोद और मोह को । निव्विद = घृणा की दृष्टि से देखो । मोणं=संयम को । समादाय = ग्रहण कर । मुणी = मुनि । कम्मसरीरगं= कर्मरूप शरीर को | धुणे = आत्मा से अलग करे | वीरा=सत्पुरुषार्थी । सम्मत्तदंसिणो-सम्यक् तत्त्वों को जानने वाले | पंतं = नीरस, हल्का । लूहं लूखा भोजन । सेवन्ति = करते हैं। एस मुणी ये ही साधु । श्रहंतरे = संसार के प्रवाह को तैरते हैं । ति = तिरे हुए हैं । मुत्ते= परिग्रह से मुक्त हुए। विरए= त्यागी | वियाहिए = कहे गए हैं । त्ति बेमि= ऐसा मैं कहता हूँ ।
भावार्थ – हे साधको ! तुम्हारे मार्ग में मोहक शब्द और मनोज्ञ स्पर्श इत्यादि विषय उपस्थित होवेंगे परन्तु ऐसे प्रसंग पर उनको सहन कर लेना और इस असंयमित जीवन के आमोद-प्रमोद को घृणा की दृष्टि से देखकर उससे अलग रहना । हे शिष्य ! मुनिरत्न संयम की आराधना करके कर्मरूप शरीर को से पृथकू | करने का या देह के ममत्व को छोड़ने का प्रयत्न करते हैं। सच्चे पुरुषार्थी और तत्वदर्शी महापुरुष लूखा-सूखा आहार करते हैं। ऐसे मुनि संसार के प्रवाह को तिर सकते हैं और ऐसे महापुरुष संसार से तिरे हुए, परिग्रह से मुक्त हुए और त्यागी समझे जाते हैं ऐसा मैं कहता हूँ ।
आत्मा
विवेचन - इसके पूर्ववर्ती सूत्र में रति अरति को निराकरण करने का उपदेश दिया गया है । जो व्यक्ति रति रति का निराकरण करने में समर्थ होता है वही अपनी साधना के दुर्गम मार्ग पर सफलतापूर्वक प्रगति कर सकता है । इसी बात को पुनः दृढ करते हुए इस सूत्र में साधकों को सूचित किया गया है कि देखो ! तुम्हारे साधना के मार्ग में अनेकविध बाधाएँ उपस्थित होगीं । वे रुकावटें तुम्हें तुम्हारे मार्ग से पतित करने के लिए प्रयत्न करेगी परन्तु तुम अपने प्रगति के पथ पर अविचलित होकर प्रयाण करते रहना । अनेक प्रकार के आकर्षक शब्द, मादक रूप, मोहक सुगंध, रसीले स्वाद और सुकोमल स्पर्श तुम्हें लुभाने का प्रयत्न करेंगे। इसी प्रकार कर्कश, भयंकर और कर्णकटु शब्द, बीभत्स रूप, नाक को फाड़ने
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