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द्वितीय अध्ययन तृतीयोद्देशक ]
कार्माणवर्गणा की दृष्टि से दोनों कर्म पुद्गल रूप हैं अतः विशेषता और हीनता के लिए स्थान ही नहीं है। इस पर भी जो कुलादि का अभिमान करता है उसकी आत्मा का पतन होता है। उसे एकेन्द्रिय और तियच में जन्म लेकर नीचगोत्र का वेदन करना पड़ता है और जो नीचगोत्र प्राप्त करने पर दीनता लाता है वह स्वयं ही दुखी बनता है। ऐसा समझ कर गोत्र का कौन अभिमान करेगा ?
.. यहाँ पर जाति का जो ग्रहण किया गया है वह उपलक्षण है। इससे बल, रूप, लाभ, ऐश्वर्य आदि मदस्थानों का भी ग्रहण कर लेना चाहिए। पाठों प्रकार के मदों में से किसी प्रकार का मद नहीं करना चाहिए। संसार में किसी की भी अवस्था एक समान नहीं रहती है। यह विचार कर मद और दीनता का त्याग करना चाहिए।
प्रत्येक प्राणी ने अनेक बार उच्च-नीच स्थानों में जन्म ग्रहण किया है अतः उन स्थानों में से किसका तो गर्व करे और किसका विषाद करे ? उच्चस्थान भी अनेक बार ग्रहण किये हैं अतः कोई विशिष्ट महत्व नहीं है। इसी तरह नीचगोत्र का भी अनेक स्थानों पर वेदन किया है अतः कोई विशेष शोक करने जैसी बात नहीं है । ये उच्च-नीच अवस्थाएँ नवीन नहीं हैं, पूर्व में अनेकशः उपयुक्त हैं अतः अभिमान, आसक्ति तथा विषाद का कोई कारण नहीं है । यही सूत्रकार फरमाते हैं:
तम्हा पंडिए नो हरिसे, नो कुम्पे, भूएहिं जाण पडिलेहि सातं, समिते एयाणुपस्सी तंजहा-अंधत्तं, बहिरतं, मूयत्तं, काणत्तं, कुंटत्तं, खुजत्तं, वडहत्तं, सामत्तं, सबलत्तं सहपमाएणं अणेगरूवाश्रो जोणीश्रो संधाति, विरूवरूवे फासे पडिसंवेदेइ।
संस्कृतच्छाया-तस्मात्पण्डितः न हृष्येत, न कुप्येत्, भूतेषु जानीहि प्रत्युपेक्ष्य सातं, समितः एतदनुदर्शी तद्यथा--अन्धत्वं, बधिरत्वं, मूकत्वं, काणत्वं, कुएटत्वं, कुब्जत्वं, वडभत्वं, श्यामत्वं, शबलत्वं । सह प्रमादेन अनेकरूपाः योनी: संदधाति विरूवरूपान्स्पर्शान् प्रतिसंवेदयति । . शब्दार्थ-तम्हा इसलिए । पंडिए-बुद्धिमान् । नो हरिसे हर्ष न करे । नो कुप्प= क्रोध न करे । भूएहि जीवों को । पडिलेह=विचार कर । सातं जाण=सुख चाहने वाले जानो। समिते समिति युक्त होकर । एयाणुपस्सी यह देखने वाला हो । तंजहा=कि । अन्धत्तं अन्धा होना । बहिरत्तंबधिर होना । मृयत्तं गृङ्गा होना । काणत्तं काणा होना। कुंटत्तंटूटा होना ! खुजत्त-वामन होना । वडहत्तं कुबड़ा होना। सामत्तं काला होना । सबलत्तं चितकबरापन । सहपमाऐणं प्रमाद से होता है । अणेगरूवानो-अनेक प्रकार की । जोणीओ संधाति-योनियों में जन्म धारण करता है । विरूवरूवे फासे अनेक प्रकार की यातनाएँ । पडिसंवेदेड-सहन करनी पड़ती हैं।
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