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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir शस्त्रपरिज्ञा नाम प्रथम अध्ययन का —षष्ठ उद्देशकः— पंचम उद्देशक में वनस्पति का वर्णन किया गया है। अब इस उद्देशक में क्रमप्राप्त काय का वर्णन किया जाता है: से बेमि संति तसा पाणा, तं जहा- अंडया, पोयया, जराउया, रसया, संसेयया, संमुच्छिमा, उब्भियया उववाइया एस संसारेत्ति पच्चइ मंदस्स विया (४७) संस्कृतच्छाया — तद् ब्रवीमि संतमे साः प्राणिनः तद्यथा - अण्डजाः पोतजाः जरायुजा रसजाः, संस्वेदजाः, सम्मूर्छनजाः उद्भिजाः, औपपातिका एष संसार इति प्रोच्यते मन्दस्य अविजानतः । शब्दार्थ — से बेमि- मैं कहता हूँ । संतिमे तसापाणा-ये त्रस प्राणी हैं। तं जहा=वे इस प्रकार हैं। अंडया अंडे से उत्पन्न होने वाले पक्षी इत्यादि । पोयया - थैली से उत्पन्न होने वाले हाथी इत्यादि । जराउ - जरायु से होने वाले गाय भैंस इत्यादि । रसया - रसों में होने वाले छोटे कीड़े । संसेयया - पसीने से उत्पन्न होने वाले जूं वगैरह । संमुच्छिमा= स्वतः उत्पन्न होने वाले प्रतंग्रिया इत्यादि । उब्भियया = जमीन खोदकर निकलने वाले खंजरीट इत्यादि । उववाइया = देवता और नारकी । एस = यह प्राणियों का समूह । संसारेत्ति= संसार | पवुच्चइ = कहा जाता है । मंदस्य अज्ञानी का । श्रविया - हिताहित के विचार से शून्य का ( इस संसार में जन्म होता है ) । I भावार्थ - हे आयुष्मन् शिष्य ! मैं त्रस जीवों का वर्णन करता हूँ सो श्रवण कर । त्रस प्राणियों के इस तरह भेद होते हैं (९) अंडे से उत्पन्न होने वाले पक्षी वगैरह (२) थैली से उत्पन्न होने वाले हाथी इत्यादि (३) जरायु से पैदा होने वाले गाय, भैंस, मनुष्यादि (४) रस में पैदा होने वाले छोटे २ कीड़े (५) संसेयया=पसीने से पैदा होने वाले जूं इत्यादि ( ६ ) संमुच्छिमा = स्वतः उत्पन्न होने वाले, पतंगिया, पक्खी बगैरह (७) जमीन से निकलने वाले तीड़ आदि (८) उपपात जन्म वाले देव और नारकी । इन आठ भेदों में संसार के सभी त्रस जीवों का समावेश हो जाता है । यह प्राणी - समुदाय ही संसार है। जो हिताहित के विचार से शून्य हैं ऐसे अज्ञानी प्राणी पुनः पुनः इसमें परिभ्रमण करते हैं । For Private And Personal
SR No.020005
Book TitleAcharanga Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyamal Maharaj, Basantilal Nalvaya,
PublisherJain Sahitya Samiti
Publication Year1951
Total Pages670
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size17 MB
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