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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४८ विकृतिविज्ञान पोषणिका ग्रन्थिके रंजनशील कोशा ( chromophobe ) इस वृद्धि में भाग लेते हैं। पर कुछ कम मारात्मक प्रकारों में ये कोशा बहुत कम संख्या में भी देखे गये हैं। पोषग्रन्थिकर्कट से विस्थाय या उत्तरजात वृद्धियाँ बहुत कम मिलती हैं। पोषग्रन्थि में अर्बुद होने के कारण जो अनेक लक्षण देखने में आते हैं उन्हें तीन समूहों में विभक्त किया जा सकता है १. वे लक्षण जो अन्तःकरोटीय पीड़नाधिक्य को प्रकट करते हैं पर क्योंकि पोषग्रन्थि के अर्बुद बहुत बड़ा आकार नहीं ले पाते इसलिए ये लक्षण बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं होते। २. अन्तःस्रावी लक्षण ( endocrine symptoms )-ये लक्षण पोषग्रन्थि की परमकार्यता या अल्पकार्यता इन दोनों में से किसी एक को प्रकट करते हैं । परमकार्यता ( hyperpituitarism ) के लक्षणों में भी भेद हो सकता है क्योंकि पोषग्रन्थि में अम्लरंज्य (acidophil) पीठरंज्य ( basophil ) और अभिरंज्य ( chromophil) तीन प्रकार के कोशा होते हैं। इनमें जो कोशा बढ़ता है वैसे ही लक्षण मिलते हैं। पोषग्रन्थि की अल्पकार्यता के साथ कन्दाधरिकभाग ( hypothalamic part ) के लक्षण होते हैं, विशेषकर जब अभिरंज्य ग्रन्थ्यर्बुद हो। ३. समीपस्थ लक्षण समीप के अंगों पर प्रभाव होने के कारण उत्पन्न होते हैं। इनमें अन्धता एक और बहुत भयानक लक्षण है क्योंकि अर्बुद की स्थिति के कारण दृष्टिनाड़ी पर पीड़न हो सकता है । इसके कारण दृष्टिनाड़ी की प्राथमिक अपुष्टि (primary atrophy ) हो जाती है। यहाँ द्वितीयक अपुष्टि नहीं होती जो अन्य मस्तिष्कगत अर्बुदों में देखी जाती है और जो दृष्टिनाड़ीपाक के उपरान्त होती है । दोनों ओर भीतर के दृष्टिनाड़ी योजनिका ( optic chiasma) के तन्तुओं पर पीड़न होने के कारण दोनों ओर के शंखकीय दृष्टिक्षेत्राओं की अन्धता ( bitemporal hemianopia) का होना एक महत्त्व का लक्षण है। चक्रवृतिका ( diaphragma sillae ) जब खिंचती है तो उसके कारण अत्यधिक शीर्षशूल होता हुआ पाया जाता है। यह शूल जब शान्त हो जाता है तब चक्रवृत्तिका फट जाती है। पर आगे चल कर अन्तःकरोटीय पीड़न की वृद्धि के साथ शिरःशूल पुनः होने लगता है। और इस पीड़न वृद्धि का अन्तिम परिणाम मृत्यु होता है। (८) अधिक्कग्रन्थि कर्कट (Cancers of the Adrenal glands ) अधिवृक्कग्रन्थि के दो भाग मुख्य होते हैं। इनमें एक मज्जक का और दूसरा बाह्यक का। मज्जक में वर्णातिरंज्य कर्कट (chromaffin carcinoma) होता है तथा बाह्यक में ग्रन्थिकर्कट वा सामान्य कर्कट मिलता है। नीचे हम इन सब का थोड़ा विचार प्रस्तुत करेंगे For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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