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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्बुद प्रकरण ७४६. वर्णातिरंज्य कर्कट या असितवर्णीय कर्कट ( Pleochromocytoma ) — यह अधिवृक्कग्रन्थि के मज्जक प्रदेश का कर्कट है जो बहुत ही कम देखा जाता है और जीवन के उत्तरकाल में उत्पन्न होता है । यह अर्बुद आरम्भ में बहुत धीरे-धीरे उत्पन्न होता है, साधारण ( अपुष्ट ) होता है तथा प्रावरित होता है । इसका तब आकार भी छोटा होता है । पर ज्यों ही यह द्विपार्श्वीय ( bilateral ) हुआ नहीं कि इसमें दुष्टता के लक्षण थोड़े-थोड़े दिखलाई देने लगते हैं । ये अर्बुद सघन वा कोष्टी, बभ्रु वर्ण के या लाल रंग के होते हैं वे बहुभुजीय विषम कोशाओं से बनते हैं जो वर्गीय ( chromates ) द्वारा अभिरंजित होते हैं । इसी कारण इसका एक नाम वर्णा तिरंज्यार्बुद भी है ये कोशा उपवृक्की ( adrenaline ) बनाते हैं । उनका निर्माण अनियन्त्रित होता है जिसके कारण निपीडाधिक्य ( paroxysmal hypertension) हो जाता है । धमनीदा भी उसी कारण होता है पर कभी उपवृक्की ( एड्रीनलीन ) की मात्रा इतनी अधिक रक्त में भर जाती है कि सहसा मृत्यु भी हो सकती है । यदि कर्कट का उच्छेद कर दिया गया तो ये कोई लक्षण नहीं रहते परन्तु शस्त्रकर्मोत्तरीय सहसागतस्तब्धता ( shock ) के कारण भी मृत्यु हो सकती है । यह अर्बुद बहुधा तो अधिवृक्क के मज्जक से बनता है पर वह मज्जक के बाहर और स्वतन्त्र गण्ड के परप्रगण्डीय वर्णातिरंज्य कोशाओं में या अधरा अन्त्र निबन्धनी धमनी के उद्भवस्थल से झुकरकैण्डल ( zucker kandle ) के अंग से जो नवजात शिशु में उपस्थित रहता है, से भी उत्पन्न होता है । मातृकाग्रन्थि ( carotid body ) को वर्णातिरंज्य कोशाओं का घर माना जाता है परन्तु उसमें उपवृक्की की मात्रा बहुत कम रहती है । उसके अर्बुदों में भी उपवृक्की कम उत्पन्न होती है । वे अर्बुद मारात्मक नहीं होते यद्यपि वे पुनः पुनः भी हो सकते हैं तथा समीप की ग्रन्थियों पर आक्रमण भी कर सकते हैं । अधिक हो जाता है जब वर्णातिरंज्य कर्कट होने को होता है तो उदर में शूल, वमन, भ्रम, नाड़ीद्रौत्य और कम्पादि लक्षण होने लगते हैं । कभी-कभी निपीड़ाधिक्य पर बहुधा यह स्थायी रूप से नहीं बढ़ पाता । अर्बुद के न निकलने पर रोगी संन्यासावस्था में ही समाप्त हो सकता है या अधिरक्तीय हृद्भेद ( congestive heart failure ) के कारण भी मृत्यु हो सकती है । ग्रन्थिकर्कट ( adrenal carcinoma ) – यह अधिवृक्क के बाह्यक का कर्कट है । यह मृदु, पीत और रक्तास्त्रावीय प्रवृत्ति से युक्त होता है । अण्वीक्षण पर कर्कट के कोशा बाह्य के गुच्छकीय कटिबन्ध ( zona glomerulosa ) या स्तंभकोशीय कटिबन्ध zona fasciculata ) के बनाने का असफल प्रयास करते हैं । देख कोशा विन्यास विषम हो जाता है तथा अस्तव्यस्त लगता है । कोशा एक परिवाहिन्य रचना में अनुक्रमित हो जाते हैं कभी-कभी महाकोशा बहुत मिलते हैं । For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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