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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्बुद प्रकरण ७४७. ( metastasizing goitre) नाम का शब्द आज व्यवहृत नहीं होता । जब अवटुका में कोई विशेष परिवर्तन न मिले परन्तु उसके विस्थाय मिलने लगें तो उसे यह नाम दिया जाता है । पर वास्तव में देखा जाय तो जब गलगण्ड और कर्कट एक साथ रहते हैं तथा प्रावरित होते हैं तो कर्कट का पता नहीं चल पाता परन्तु रक्तधारा द्वारा कर्कट कोशा फुफ्फुस वा अस्थियों में विस्थाय बनाने को स्वतन्त्र हो जाते हैं । प्रावर हटने पर कर्कट अपने असली रूप में आ जाता है । अतः यह गलगण्ड नहीं जो fararaarta है बल्कि कर्कट ही विस्थाय करता है । अतः केवल गलगण्ड के लक्षण पाकर ही समझ लेना कि यहाँ कर्कट नहीं है, बहुत बड़ा धोखा हो सकता है । उसका औतिकीय परीक्षण भी कभी-कभी धोखा दे सकता है । अतः इस रोग का निदान करने में बहुत अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है । यहाँ हम सुश्रुत के गलगण्ड के असाध्य लक्षणों के सूत्र को देते हैं । उसे देखने से ज्ञात होगा कि वह गलगण्ड का वर्णन न होकर गलगण्डयुक्त कर्कट का वह वर्णन है जिसमें कण्ठनाड़ी पर बहुत पीड़न होने से श्वासकृच्छ्रता उत्पन्न हो गई हो तथा स्वरयन्त्र तक प्रभावित होने से स्वर बैठ गया हो । अरुचि, गात्रमार्दव, अरोचक और क्षीणता कर्कट के कारण हैं जो संवत्सरातीत होने से और भी स्पष्ट हो गया है कृच्छ्राच्छ्वसन्तं मृदुसर्वगात्रं संवत्सरातीतमरोचकार्तम् | क्षीणं च वैद्यो गलगण्डयुक्तं भिन्नस्वरं चापि विवर्जयेच्च ॥ कष्ट से श्वास लेने वाला, जिसका सम्पूर्ण शरीर मृदु और क्षीण हो गया हो, जिसका स्वर बैठ गया हो, जिसे एक वर्ष से अधिक रोग में हो गया हो तथा जिसे अरुचि रहती हो ऐसे गलगण्डयुक्त रोगी को वैद्य को छोड़ देना चाहिए क्योंकि वह असाध्य है, उसकी चिकित्सा नहीं हो सकती । ( ७ ) पोषणिका ग्रन्थि कर्कट (Cancer of the Pituitary Body) पोपग्रन्थि, पीयूषग्रन्थि या पोषणिका ग्रन्थि में ग्रन्थिकर्कट उत्पन्न होता है । आरम्भ में यह अर्बुद दृष्टिनाडीपरिखा ( sella turcica ) के भीतर ही रहता है । ज्योंज्यों यह बढ़ता है, यह परिखा भी बढ़ती है । उसकी गुलिकाएँ (clinoid processes) प्रचूषित हो जाती हैं और परिखा फूट जाती है । तत्पश्चात् कर्कट तृतीय मस्तिष्क निलय की भूमि को आक्रान्त करता है । उसके कारण समीपस्थ कोई भी अंग हानि उठा सकता है । परिखा के फूट जाने से करोटिगुहा का नासा से सीधा सम्बन्ध जुड़ सकता है और मस्तिष्क सुषुम्ना जल नासा द्वारा निकल सकता है ( ब्वायड ) | 1 अण्वीक्षण करने पर कर्कट कोशाओं के विषमाकार समूह अथवा सघन रज्जुएँ असंख्य रक्तवाहिनियों द्वारा पृथक् होती हुई देखी जाती हैं कोशाओं का विन्यास कुछ विचित्र अप्रारूप (atypical) होता है। कभी-कभी कोशा गर्ताणुओं के चारों ओर रहते हैं जिनमें श्लेषाभ पदार्थ भरा रहता है । यहाँ कोषीय विह्रास मिल सकता है । नियमतः For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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