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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२० विकृतिविज्ञान विभजनाङ्कों से कोशा प्रगुणन की अधिकता का ज्ञान होता है तथा भक्षक प्रवृत्ति का प्रमाण यह है कि कर्कट के दुष्ट कोशाओं के गर्भ में रक्त के लाल कण या सित कोशा पाये जाते हैं जिन्हें वे घेरे रहते हैं । लेषाभ कर्कट ( Mucinoid or Colloid Carcinoma ) कुछ कर्कट ऐसे भी होते हैं जिनमें श्लेषाभ विहास या श्लेषाभ अपजनन पाया जाता है। किसी भी स्थान के कर्कट के पूरे भाग में या उसके एक अंशमात्र में यह अपजनन हो सकता है । कभी-कभी तो ऐसा देखा जाता है कि अर्बुद में कोशीय रचना के स्थान पर केवल श्लेष्यकवत् ( jelly like ) पदार्थ का पुञ्ज ही पर्याप्त मात्रा में प्रकट होता है । यह पदार्थ ही उस कर्कट की दुष्ट ऊति बनता है । जहाँ तक कर्कट की दुष्टता का सम्बन्ध है श्लेषाभ विहास का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा करता । श्लेषाभ विह्रास मुख्यरूप से आमाशय तथा बृहदन्त्र में स्थित कर्कटों में पाया जाता है और गौणरूप से बीजग्रन्थि, वक्षस्थल तथा पित्ताशय के कर्कटों में मिलता है । जैसा कहा गया है कोशाओं में श्लेषि की उपस्थिति कोई उनकी क्रिया के परिणाम रूप नहीं होती अपि तु विहास के कारण हुआ करती है । यह विद्वास ग्रन्थिकर्कटों में जितना अधिक देखने में आता है उतना साधारण कर्कटों में नहीं । I कर्कट के कोशाओं में विहास का श्रीगणेश उनके कायारस में श्लेषाभविन्दुकों के रूप में होता है । ये बिन्दुक एक दूसरे से मिलते चले जाते हैं जिसके कारण कोशा फूल जाता है । कभी-कभी कोशा की न्यष्टि अपने स्थान से च्युत हो जाती है तथा कोशा के परिणाह तक पहुँच जाती है और वहाँ वह चिपिटित हो जाती है । इससे कोशा का चित्र एक अंगूठी सरीखा हो जा सकता है। इसी कारण इस कोशा को मुद्रिकीय कोशा (signet ring cell ) कहा जाता है । आगे चल कर कोशा की मृत्यु हो जाती है और वह फट जाता है । इस प्रकार कई कोशाओं के फटने से श्लेषाभ पदार्थ पुंजीभूत हो जाता है । यह विहास कर्कट के जीर्ण भागों में होने के हेतु कर्कट का प्रसार या प्रगति अथवा दुष्टता में कोई महत्व का परिवर्तन नहीं होता । यह विहास उत्तरजात वृद्धियों में भी यथापूर्व देखा जाता है । विविध अंगों के कर्कट ऊपर कर्कटार्बुद का सर्वसामान्य विवेचन हो चुका है अब आगे विविध शरीरावयवों में होने वाले कर्कटों का विशिष्ट वर्णन उपस्थित किया जाता है । हम यहाँ मुख्यतया निम्न का वर्णन करेंगे : १. श्वसनसंस्थान के कर्कट ( cancers of respiratory system ) । २. महास्रोतीय कर्कट ( cancers of alimentary canal )। ३. यकृत् कर्कट ( cancers of the liver ) । For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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