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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्बुद प्रकरण ६६६ 1 होता है कि अनेक कोशा तो तुरंत मर जाते हैं । चित्र में उनका होता हुआ विस्फोट सरलतापूर्वक देखा जा सकता है । कोशा विभजनचक्र में कोशा की स्थिति क्या है उसका और तेजोहृषता का बहुत सम्बन्ध आता है । सबसे अधिक तेजोहृष काल वह होता है जब कोशा विभजन का आरम्भ करने वाला होता है । संवर्ध के सभी कोशा कभी मरते हैं यद्यपि मानव शरीर पर जितनी मात्रा में किरणों का प्रयोग होता है उससे कहीं अधिक मात्रा में किरणों का प्रयोग किया. जाता है । पर किरणों का मारक प्रभाव शरीरस्थ कर्कट कोशाओं की अपेक्षा बहुत अधिक हुआ करता है । क्योंकि जब संवर्ध के पदार्थ से उपसंवर्ध तैयार किए जाते हैं तो अवशिष्ट कोशाओं में पुनर्जनन की शक्ति ही नहीं रहती । परन्तु इसका अर्थ. यह नहीं कि उनकी पुनर्जनन शक्ति तुरत ही गायब हो जाती है अपि तु वे एक दो नहीं दर्जनों पीढ़ी उत्पन्न करने के पश्चात् बेकार हो जाते हैं और धीरे धीरे के कोशा जो उनके द्वारा विभजन से बने हैं सभी नष्ट हो जाते हैं । अभी अभी जो ऊतिसंवर्गों पर तेज किरणों के प्रभाव के सम्बन्ध में प्रयोग हो रहे हैं वे बतलाते हैं कि तेजीय प्रविकिरण का प्रथम प्रभाव कोशाओं की श्वसनक्रिया के कम होने में होता है । यद्यपि उनकी मधुअंशनी ( glycolysis ) क्रिया स्थिर रहती है । श्वसन. क्रिया में बाधा पहुँचना ही किरणों का मुख्य प्रभाव प्रतीत होता है । न्यष्टि और कोशा की कला ( membrane ) पर क्रिया होने से तथा कणाभ सूत्रों (mito-chondria ) के विनाश से जो कोशीय श्वसन से सम्बन्धित होते हैं तथा वाहिनीय antaraर्ष के कारण जारक पूर्ति के अभाव के कारण यह श्वसन कार्य रुकता है । इससे ज्ञात होगा कि स्वाभाविक अथवा आर्बुदिक ऊति पर प्रविकरण का प्रभाव साधारण न होकर बहुत जटिल होता है । शाविभजन पूर्वी काल ( premitotic phase ) में जब होने ही वाला होता है उस समय प्रविकिरण का सर्वाधिक प्रभाव उस समय किरण लगते ही कोशा मर जाता है । पर यदि कोशा उस For Private and Personal Use Only न्यष्टीय विभजन देखा जाता है । अवस्था को न पहुँच पाया हो तो उस समय किरण के प्रभाव से न्यष्टीय विभजन कुछ काल के लिए रुककर फिर थोड़े समय बाद हो जाता है । पर इस समय का विभजन अनृजु होता है और या तो विभाजित होते होते ही कोशा खतम हो जाता है या विभजित हुए कोशा बनने के बाद मर जाते हैं । जब कोशा विश्राम काल में हो और उसका प्रविकिरण कर दिया जावे तो उस समय कोई परिवर्तन प्रकट नहीं होता पर आगे की पीढियों में प्रगुणन नहीं होता और कोशा मर जाता है । प्रायोगिक कार्य के द्वारा हम इस परिणाम पर पहुँचते हैं कि प्रविकिरण का मुख्य प्रभाव पित्र्य सूत्रों (chromosomes ) पर होता है । यह दो प्रकार का होता है । यदि कोशा विभाजित हो रहा हो तो पित्र्यसूत्र एक दूसरे में आबद्ध हो जाते हैं और विभजन रुक जाता है और यदि कोशा विश्रामकाल ( resting phase ) में हो तो आगे की कोशीय परिवर्तनावस्था कुछ काल के लिए रुक जाती है और पित्र्यसूत्रों में
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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