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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६६८ विकृतिविज्ञान ___ इतना सब कहने पर भी यह कहते हुए हमें अत्यधिक खेद होता है कि हम मनुष्य में दुष्ट वृद्धियों के हेतुओं पर कोई सन्तोषजनक प्रकाश नहीं डाल सके। प्रत्येक को कोई न कोई जीर्ण व्रणशोथ रहता है। प्रत्येक के प्रजननांग वृद्धावस्था में शिथिल पड़ते हैं। पर क्या सबको अवश्य ही कर्कटोत्पत्ति होती है ? नहीं, फिर इस महाव्याधि का मुख्य हेतु क्या है वहाँ तक पहुँचना अभी शेष है। अर्बुदों का प्रविकिरण प्रविकिरण ( irradiation ) के लिए क्षकिरणों तथा तेजातु का ही प्रयोग अभी हो रहा है। न्यूक्लियर फिजिक्स का ज्यों ज्यों विस्तार होता जाता है त्यो त्यो सम्भव है कि प्रविकिरण के लिए अन्य प्रकार की किरणों का भी उपयोग होवे । यहाँ हम प्रविकिरण का कर्कट कोशाओं पर प्रभाव, प्रविकिरण का अतियों पर प्रभाव तथा उपशयात्मक प्रक्रिया इन तीन का वर्णन करेंगे। प्रविकिरण का कर्कट कोशाओं पर प्रभाव कर्कट कोशाओं पर प्रविकिरण का प्रभाव हम दो प्रकार से अध्ययन कर सकते हैं। एक तो हम अति संवर्ध ( tissue culture ) पर प्रविकिरण करें अथवा हम प्रत्यक्ष मानव प्राणी पर उसकी क्रिया देखें। किसी भी प्रकार प्रयोग करने पर हम दो परिणामों पर पहुँचते हैं-१. कोशाओं की सक्रियता का अवरोध ( arrest of activity ) तथा २. कोशाओं का विद्वाल तथा विनाश ( degeneration and destruction of cells ). __वर्गौनी तथा ट्रिबौण्डौ का एक सिद्धान्त यह है कि किसी भी ऊति की तेजोहपता ( radio-sensitivity ) उसकी प्रजनन क्रिया ( reproductive activity ) पर निर्भर करती है। कोशाओं का विभजन जितना ही अधिक होगा ऊति उतनी ही तेजोहृष होगी। यही कारण है कि कणन ऊति, भ्रौणिकीय ऊति, तथा अविभिनित द्रुत विभजनशील कर्कट अधिक तेजोहष होंगे। तेज के प्रभाव से कोशा का अल्पांश में या पूर्णांश में विहास हो जाता है। कोशा की न्यष्टि टूट जाती है और उसका वर्णाशन ( chromatolysis) हो जाता है। कोशा का प्ररस कणात्मक हो जाता है और उसमें रसधानी ( vacuole ) बन जाती है तथा कोशा की मृत्यु हो जाती है और वह लुप्त हो जाता है। यह पहले कहा जा चुका है कि तेज का प्रभाव न्यष्टिप्रोभूजिनों के समवर्त (चयापचय) पर पड़ता है जो न्यष्टोय अभिवर्णि ( nuclear chromatin ) के अन्दर रहती है जिसकी कि क्रियाशीलता पर कोशा का विभाजन हुआ करता है। कैम्ब्रिज के एक विद्वान् स्टेजवेज ने तथा कैण्टी ने ऊतिसंवों पर तेजीय प्रतिक्रिया के चलचित्र तैयार किए हैं जिनको देखने से तेजीय रश्मियों के द्वारा कर्कट कोशाओं पर क्या बीतता है उसे प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। उन्हें देखने से ज्ञात For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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