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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्बुद प्रकरण ६६ बुंद के कारण मृत्यु कई हेतुओं से हुआ करती है। मर्म प्रदेश में अर्बुद का होना एक कारण है। अर्बुद में पूया ( sepsis) दूसरा कारण है, रक्तस्राव तीसरा कारण है, अरक्तता और मानसिक कारणजन्य दौर्बल्य के साथ उपसर्ग आदि अन्य कारण है। दुष्ट अर्बुदों में दुःस्वास्थ्य ( chachexia) के मानसिक हेतुओं के अतिरिक्त ज्वर, तथा अर्बुदों के द्वारा उत्पन्न विषाक्त पदार्थों का रक्त में संभ्रमण भी महत्त्व का हेतु है। कर्कटोत्पत्ति ( Carcinogenesis) शीर्षक कर्कटोत्पत्ति होते हुए भी हम यहाँ सम्पूर्ण दुष्ट अर्बुदों की उत्पत्ति पर संक्षिप्ततः विचार करेंगे। कर्कट की उत्पत्ति का मूलभूत और महत्वपूर्ण हेतु क्या है यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है। जो व्यक्ति इस हेतु का पता लगावेगा उसे करोडों रुपये पुरस्कार स्वरूप प्राप्त हो सकेंगे तथा वह मानवजाति का अपरिमित उपकार कर सकेगा इसमें कोई सन्देह नहीं है। अभी तक देश विदेश में जो खोजें हुई हैं उनके आधार पर जो कुछ प्राप्त हो सका है उसे ही हम मुख्य सामग्री मान कर इस विषय का उहापोह कर रहे हैं। होगा कोई भारतीय जो कर्कटोत्पत्ति की समस्या को पूर्णतः सुलझाकर भारत का भाल संसार के समक्ष ऊँचा कर सके ? ___ प्राथमिक कर्कट यदि किसी एक स्तनी जीव ( mammal ) को हो जावे और फिर सर्जन उसका कुछ भाग काट कर किसी दूसरे जीव में आरोपित (graft ) कर दे तो यह देखा गया है कि जिस प्राणी का रोपण है वह उसी वर्ग के दूसरे प्राणी में ही आरोपित होता है अन्य दूसरे किसी भी प्राणी में नहीं होता चाहे वह स्तनी ही क्यों न हो। इसे यों समझा जा सकता है कि यदि किसी शशक को किसी स्थान पर कर्कट हुआ तो इस कर्कट का आरोपण केवल दूसरे शशक में ही सम्भव अभी तक हो सका है किसी मूषक या अन्य जीव में नहीं। जिस प्राणी में कर्कट का इस प्रकार आरोपण हुआ करता है उसमें रोपण के कारण जो कर्कट उत्पन्न होता है उसको काट कर तीसरे प्राणी में रोपित कर सकते हैं तीसरे से चौथे और चौथे से पाँचवें में इस प्रकार यह रोपणी क्रिया वर्षों चल सकती है। मूल कर्कट में जिस प्रकार के कोशा होते हैं प्रत्येक रोपण में उसी प्रकार के कोशा प्रगुणित होते हैं और फिर चाहे रोपण पाँचवें प्राणी में या पाँचवीं पीढ़ी में ही क्यों न चल रहा हो कोशाओं की प्रकृति कदापि नहीं बदला करती है । इस प्रकार आरोपित किसी कर्कट की ऊति को सरलतापूर्वक परखनली में जीवित रखा जा सकता है और वर्षों बाद उन्हें उसी जाति के प्राणी में पुनः आरोपित किया जा सकता है। इसी कारण कर्कट कोशाओं को अमर माना जाता है । परन्तु प्राणियों के ऊपर किए गये इन रोपणों के प्रयोगों ने इस प्रश्न का कोई समाधानकारक उत्तर अभी तक प्रस्तुत नहीं किया कि मानव शरीर में एक साधारण कोशा कर्कट कोशा या दुष्ट कोशा में क्यों कर परिणत हो जाता है और फिर वह सदैव उसी रूप में कैसे रहा आता है ? For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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