SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 751
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६७८ विकृतिविज्ञान की वृद्धि, उसकी स्थिति, उसका सामान्यन (generalisation ) तथा उसके उत्तरजात परिवर्तन आदि उसके द्वारा उत्पन्न प्रभावों के कारक होते हैं। स्थानिक वृद्धि के कारण उस स्थानविशेष पर एक अनावश्यक बोझ पड़ जाता है जो निरन्तर बढ़ता रहता है इस बोझ के कारण कई जीवन के लिए अत्यधिक आवश्यक भाग भी दब जाते हैं और अपरिमित हानि हो जाती है। मस्तिष्क में होने वाले साधारण अर्बुद भी इसी कारण घातक होते हुए पाये जाते हैं। उष्णीषक (pons) या प्राणग्रन्थि या सुषुम्नाशीर्षस्थ अर्बुद कितने घातक होते हैं इससे चिकित्सक समाज अपरिचित नहीं है। यह बोझ कभी-कभी महत्त्वपूर्ण अंगों की क्रिया रोक देता है। फुफ्फुस या आमाशय की क्रिया में विघ्न होना उनके अर्बुदों के कारण स्वाभाविक है। कभी-कभी जब अर्बुद सुषिर ( hollow ) अंगों में होते हैं तो उन्हें भर देते हैं। यदि अन्नवहनलिका ( oesophagus) में अर्बुद हो गया और उसके सुपिरक को भर दिया तो फिर अन्न का आमाशय में जाना असम्भव हो जाता है और रोगी भूख से तड़प कर मर जाता है। दुष्ट अर्बुदों की एक क्रिया का नाम है ऊतियों का अपरदन ( erosion of the tissues ) यह अपरदन या विनाश स्थान विशेष पर अर्बुद का बोझ पड़ने से अथवा वहाँ रसपूर्ति बन्द कर देने से होता है यदि किसी क्षुद्रवाहिनी का अपरदन प्रारम्भ हो गया तो वहाँ से रक्त चूने लगता है। यदि किसी बड़ी वाहिनी में विदार बन गया तो अधिक रक्तस्राव होता है। अल्प रक्तच्याव द्वारा शरीर दुर्बल हो जाता है तथा शरीर में अल्परक्तता (anaemia) हो जाती है तथा रक्तस्राव अत्यधिक दुर्बल कर देता है तथा शीघ्र मृत्यु का कारण बनता है । वृक्क या मूत्रपिण्डस्थ अर्बुद के कारण रक्कमेह ( haematuria) का होना रक्तच्याव का एक उदाहरण है। गर्भाशय से रक्तस्राव चाहे जब होने का स्पष्ट अर्थ यही है कि वहाँ कोई अर्बुद अपरदन कार्य कर रहा है। इसी प्रकार आमाशय में कर्कट होने से रक्तवमन का होना तथा आन्त्र में कर्कटोपस्थिति के कारण जीवरक्त का मल के साथ देखा जाना मिलता है। जब कोई सुधिर अंग अर्बुद के कारण भर जाता है तो उसका प्रारम्भिक भाग विस्फारित हो जाता है । आमाशय, सामान्य पित्त प्रणाली तथा मस्तिष्कीय निलयों का अत्यधिक विस्फार इसी कारण होता है। अर्बुदों में जहाँ रक्तस्राव और वन चलता रहता है वहाँ उपसर्ग (infection) का लगना कोई कठिन बात नहीं है। जिस प्रकार का उपसर्ग लगता है उसी प्रकार के लक्षण शरीर में देखे जा सकते हैं। संतापाधिक्य उपसर्ग के कारण ही होता है। ___ अर्बुद के भार के कारण स्थानिक शूल का होना भी अस्वाभाविक नहीं है साधारण अबुदों में जहाँ वह कम होता है दुष्ट अर्बुदों में वह विशेष देखा जा सकता है। __ अबुंद की उपस्थिति मन की स्थिति पर बहुत खराब प्रभाव डालती है। हर समय चिन्ता का होना तथा उसके कारण भूख और निद्रा की कमी से रोगी का सूखते चले जाना नित्य देखने में आता है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy