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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्बुद प्रकरण ६७७ ३-सूत्रिभाजनांकों की संख्या ( the number of mitotic figures) ____ हम आगे चारों वर्गों के चित्र उपस्थित कर रहे हैं। ये चित्र स्पष्टतः प्रत्येक वर्ग की विशिष्टता को स्थापित करते हैं। चित्र देखने से यह भी पता चल जाता है कि जो अर्बुद प्रथम वर्ग में है वह सुसाध्य है, द्वितीय वर्ग अर्बुद साध्य है, तृतीय वर्ग का अर्बुद कष्ट साध्य है तथा चतुर्थवर्गस्थ पूर्णतः असाध्य है। प्रथम द्वितीय वर्ग वाले अर्बुदों में शस्त्रकर्मादि चिकित्सा से लाभ होने की आशा है जब कि शेष दो वर्गों में निराशा अधिक है। ये अंशांश कल्पना चिकित्सा और साध्यासाध्यता (2) की दृष्टि से ही महत्त्व रखती हैं। वैकारिकीदृष्टया इनका कोई महत्व विशेष नहीं है। साथ ही जहाँ यह वर्गीकरण त्वचा और गुद प्रदेश के कर्कटों में स्पष्टतः मिलता है वक्ष तथा गर्भाशयग्रीवा के कर्कटों में अस्पष्ट होता है। दुष्ट काल्यर्बुदों ( melanomas ) में भी इसका कोई उपयोग नहीं देखा जाता। क्योंकि हम अण्वीक्ष के नीचे अर्बुदीय छेद का अध्ययन करके ही वर्ण विनिश्चय करते हैं और चूंकि एक अर्बुद सब स्थानों पर एक बराबर दुष्ट नहीं होता न उसकी दुष्टता का विकास सब स्थानों में एक साथ होता है अतः अल्प दुष्ट स्थल का छेद उस अर्बुद को प्रथम दो वर्गों में तथा अतिदुष्ट स्थल का छेद ( sec. tion ) उसे अन्तिम दो वर्गों में रख सकता है इस प्रकार छेदों से भ्रामकता की वृद्धि ही होती है। इसलिए अण्वीक्ष यन्त्र से प्राप्त परिणाम को प्रत्यक्ष नैदानिकीय परीक्षण की कसौटी पर भले प्रकार कस कर तब आगे बढ़ना चाहिए। इस अंशांश कल्पना की महत्ता को कम करते हुए ब्वायड लिखता है: “The clinician must not take grading too seriously, but must consider the age of the patient, the extent of the disease, its duration, its rate of growth, and most important of all, involvement of lymph nodes.' ___ अर्थात् चिकित्सक को अर्बुद दौष्टय की अंशांश कल्पना को ही सब कुछ मान कर नहीं चलना चाहिए अपि तु, रोगी की वय, रोग का विस्तार, रोग का काल, अर्बुद वृद्धि की गति का पूर्णतः विचार करना चाहिए और साथ ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण लस ग्रन्थियों की प्रस्तता कितनी हो चुकी है इसे समझना चाहिए। इस दृष्टि से ब्राडर्स द्वारा उपस्थित किया हुआ यह वर्गीकरण साध्यासाध्यता के लिए कोई सहायता नहीं देता है और न यह इसकी उपयोगिता भी है। इस वर्गीकरण के द्वारा तेजानुहृषता ( radio--sensitivity ) का ज्ञान होता है । अर्थात् अर्बुद पर रेडियो क्रिया कितनी की जा सकती है। इस दृष्टि से यह चिकित्सा कैसी या कितनी हो इस ओर इङ्गित करता है न कि साध्यासाध्यता की ओर । अर्बुद प्रभाव अर्बुद का प्रभाव स्थानिक और सर्वाङ्गीण दोनों प्रकार का पड़ा करता है। अर्बुद For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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