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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६७६ विकृतिविज्ञान ( nucleic acid metabolism ) का विक्षोभ है जिसके कारण पित्र्यसूत्रों की अनृजु क्रिया प्रारम्भ हो जाती है। कदाचित् रेडियम एक्सरे की किरणों के प्रयोग से यह क्रिया बन्द हो जाती है जिसके कारण कर्कट कोशा मर जाते हैं। ___ दुष्ट न्यष्टि सदैव बड़ी होती है, परमवर्णिक (hyperchromic) होती है, उसकी जालिका स्थूल ( coarse • network ) होती है, आकृति में बहुत भिन्नता होती है तथा उत्केन्द्रित (eccentric) होती है । अणुभस्मीकरण (micro-incineration) की विधि से जला देने पर एक दुष्ट अर्बुदीय कोशा की न्यष्टि में निरीन्द्रिय पदार्थों की मात्रा ( inorganic contents ) स्वाभाविक न्यष्टि की मात्रा से अधिक देखी गई हैं । ऐसा कैथी, स्काट तथा हौनिंग का मत है।। मैक्कार्थी का कथन है कि एक दुष्ट कोशा में सर्वाधिक महत्व की वस्तु होती है निन्यष्टि ( nucleolus ), यह निन्यष्टि न्यष्टि के अनुपात से भी बड़े आकार की देखी जाती है और इसके चारों ओर एक प्रभामण्डल ( halo ) होता है। इतनी बड़ी निन्यष्टि न तो स्वाभाविक कोशा में होती है और न साधारण अर्बुदिक कोशा में पाई जाती है। ब्वायड का कथन है कि ये कौशिकीय परिवर्तन जमे हुए अदृढ छेदों ( frozen unfixed sections ) में पाये जाते हैं। आईपट्टियों ( wet films ) में जिन्हें तुरत ही स्थिर करके अभिवर्णित कर दिया गया हो वहाँ देखे जाते हैं। गीली पट्टियों में बहुन्यष्टि कोशा और महाकोशा जितनी सरलता से देखे जाते हैं वे मृद्वसा छेदों (parafin sections) में नहीं पाये जाते। यह सब कर्कट कोशाओं के लिय सत्य है किन्तु संकट कोशाओं के लिए नहीं। अर्बुद-दौष्टय की अंशांश कल्पना एक अर्बुद में कितने ही अंश में दौष्टय देखा जा सकता है। अण्वीक्ष की सहायता से अधिक दुष्ट अर्बुद का ज्ञान जितनी सरलता से लगाया जा सकता है उतनी सरलता से अल्प दुष्ट अर्बुद को पहचानने पर्याप्त कठिनता देखी जाती है । वह दुष्ट है या नहीं इसे कहना भी बड़ा कठिन होता है। परन्तु कितने अंश में कौन अबुंद दुष्ट है इसे जानना परमावश्यक है क्योंकि उसी के आधार पर चिकित्सक अर्बुद की साध्यासाध्यता का निश्चय करता है और चिकित्सा की सफलता वा असफलता की घोषणा करता है। इसलिए अबुंदों की अंशांश कल्पना (grading of tumours ) का ज्ञान बहुत उपादेय वस्तु है। बौडर्स ने साध्यासाध्यता तथा प्रत्यक्ष दौष्टय के आधार पर अर्बुदों को चार वर्गों में विभाजित किया है। प्रथम वर्ग के अर्बुद अल्पतम दुष्ट ( least malignant ) होते हैं। चतुर्थ वर्ग के अर्बुद अधिकतम दुष्ट माने जाते हैं। वर्ग द्वितीय और तृतीय मध्यवर्ती वर्ग हैं। ये वर्ग अर्बुद की संरचना को ध्यान में रखते हुए किए गये हैं। वर्गीकरण (अंशांश कल्पना) करते समय ३ बातों का प्रमुखतया विचार किया गया है १-विभिन्नन की अनुपस्थिति या अघटनता ( anaplasia ), २-परमवर्णता ( hyperchromatism ), तथा For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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