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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६६५ विकृतिविज्ञान अर्बुदिक कोशा समीपस्थ ऊति अवकाशों में घुसते हुए प्रायः देखे जाते हैं इसी कारण audiaant प्रकट होने वाला अर्बुदक्षेत्र प्रत्यक्षतया देखे गये अर्बुदक्षेत्र से सदैव बड़ा होता है । सैम्पसन हैंडले ने वक्षकर्कट का उदाहरण देते हुए कहा है कि अर्बुदिक कोशा सहाओं का परिवेधन ( permeation of lymphatics ) करते हैं और इस विधि से उनका विस्तार लसवहाओं के भीतर हो जाता है जहाँ वे उनके साथ-साथ वृद्धि करते हैं । अन्तः शल्यता — रक्तधारा द्वारा या लसधारा द्वारा अर्बुदिक कोशा दूरस्थ शरीरांगों तक पहुँचाये जाया करते हैं । लसीक अन्तःशल्यों के द्वारा प्रादेशिक स ग्रन्थकों में उत्तरजात वृद्धि देखी जाती है, यह वृद्धि प्रथम अर्बुदिक वृद्धि के समीप तो बहुधा होती है पर वह दूर भी हो सकती है । आमाशयिक कर्कट अध्यक्षकीय भाग (supra clavicular part ) की लसग्रन्थियों में कर्कटोत्पत्ति कर सकता है । यह स्मरण रखना अत्यावश्यक है कि कर्कटार्बुद लसधारा द्वारा बहुत अधिक गमन करता है परन्तु संकटार्बुद वैसा नहीं किया करता । परन्तु रक्तधारा द्वारा गमन का कार्य कर्कट और संकट दोनों प्रकार के दुष्ट अर्बुदिक कोशा किया करते हैं। अधिक वाहिनीसम्पन्न अर्बुद तथा वे अर्बुद जो रक्तवाहिनियों को करलता से आक्रान्त कर लेने में निपुण होते हैं वे विस्थायोत्पत्ति ( metastasis ) शीघ्र कर लेते हैं । इसका पूर्ण उदाहरण गर्भाशय का जराय्वधिच्छार्बुद ( chorionepithelioma ) होता है । 1 फुफ्फुसों में उपसर्ग सदैव दैहिक रक्तसंवहन के मार्ग में स्थित अर्बुदों के कारण पहुँचता है । जैसे यदि अस्थि या वृक्कों में कर्कट या अर्बुद बनेगा तो फुफ्फुसों में अन्तःशल्य पहुँच कर वहाँ उत्तरजात अर्बुद बना देंगे। यकृत् में उत्तरजात नववृद्धि ( अर्बुद) निर्माण का कारण प्रतिहारिणीय रक्तसंवहन के मार्ग में अर्बुद का उपस्थित होना है । आमाशय या आन्त्र में अर्बुद होने पर यकृत् में उत्तरजात अर्बुद या नववृद्धि बन सकती है । यदि फुफ्फुस में ही सर्वप्रथम अर्बुद हो तो उससे उत्तरजात अर्बुद मस्तिष्क में अथवा अन्य शरीरांगों में बन सकते हैं । यह कोई आवश्यक नहीं कि एक अंग का कर्कट किसी निश्चित अंग में ही अपने विस्थाय उत्पन्न करेगा । अर्थात् आमाशय के कर्कट के कारण एक रोगी में यकृत् में विस्थायपुंज देखने में आते हैं तो दूसरे रोगी के औदरिक लसग्रन्थकों में विस्थाय दीख पड़ते हैं तथा तृतीय रुग्ण में कहीं भी विस्थाय नहीं मिलते। ऐसा क्यों होता है ? इस प्रश्न का पूरा उत्तर अभी तक प्राप्त नहीं हो पाया है। 1 हम एक अंग में कर्कट की उत्तरजात उत्पत्ति देखते हैं परन्तु दूसरे अंग में नहीं । इसका एक कारण पर्यावरण ( environment ) बतलाया जाता है । पेशियों में कर्कटीय अन्तःशल्य भर दिये जाने पर भी पेशियों में उत्तरजात कर्कट का उत्पन्न होना For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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