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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अर्बद प्रकरण ६६६ असम्भव देखा जाता है। फुफ्फुस में अर्बुदिक अन्तःशल्य प्रायः नष्ट हो जाते हैं। क्योंकि उनके ऊपर तन्त्वि का आवरण चढ़ जाता है जिसके कारण वे फुफ्फुस ऊति में भले प्रकार रोपित नहीं हो पाती जिसके कारण उनसे विस्थायिक वृद्धि नहीं होती। पेशियों या फुफ्फुसों में उत्तरजात अर्बुदों का निर्माण न होने का मुख्य कारण वहाँ पर आवश्यक पर्यावरण की कमी मानी जाती है । __ यदि दो ऐसे प्राणी हम पकड़ लें जिनके एक से ही अर्बुद हों। और उन दोनों के अर्बुदों को डट कर मला जावे और मलने के तुरत बाद एक को मार दिया जावे और फिर उसकी फुफ्फुसस्थ केशिकाओं की परीक्षा की जावे तो वे अर्बुदिक कोशाओं से भरी हुई मिलेंगी। फिर दूसरे प्राणी को कुछ महीनों के उपरान्त मार कर उसके फुफ्फुस देखे जावें तो वहाँ बहुत कम विस्थाय मिलते हैं। उसका कारण यह है कि जितने अन्तःशल्य फुफ्फुसों तक पहुँचे थे उनमें बहुत ही कम को ऐसा पर्यावरण प्राप्त हुआ कि उनसे उत्तरजात वृद्धि हो सकी शेष असफल रहे । रक्तधारा द्वारा अर्बुदिक कोशाओं का परिवहन ( transportation ) एक बात है तथा प्राचीरों को भेद कर अर्बुदिक कोशाओं द्वारा उत्तरजात अर्बुदों का निर्माण करना दूसरी बात है। कुछ अर्बुद किसी विशेष अंग के प्रति पूर्वपक्ष रखते हैं। उसका कारण यह नहीं है कि वे वहाँ पहुँचाये जाते हैं अपितु यह कि वे वहाँ योग्य पर्यावरण का अनुभव करते हैं । इसका उदाहरण हम अस्थियों के उत्तरजात अर्बुदों से देते हैं। सर्वप्रथम वक्ष, अष्ठीलाग्रन्थि, वृक्क, फुफ्फुस अथवा अवटुकाग्रन्थि में बने अर्बुदों के कारण अस्थि के उत्तरजात ( secondary ) अर्बुद बनते हैं। इसी प्रकार त्वचा के उत्तरजात अर्बुद काल्यर्बुद ( melanoma) से बना करते हैं। शरीररचना के ही आधार के अनुसार विभिन्न अंगों में अर्बुदिक विस्थाय नहीं बना करते। अष्ठीला या पुरःस्थग्रन्थि (prostate gland ) के कर्कट द्वारा बने हुए विस्थाय फुफ्फुस में न बन कर ग्रैविक कशेरुकाओं में अथवा लम्बी अस्थियों में बना करते हैं। इन अस्थियों को जाने का कारण बैटसन कशेरुकीय सिराओं ( vertebral veins ) की उपस्थिति द्वारा देता है जो त्रिक, कटि, उदर और वक्ष की सिराओं के साथ जाल बनाती है। ये ऊपर सौषुम्निक सुरंगा तक जाती हैं। अन्य प्राणियों में सुषुम्ना के आर पार सिराओं का एक ऐसा संस्थान माना गया है जिसका सम्बन्ध हृदय या फुफ्फुसों से नहीं होता। इस प्रकार अर्बुद के प्रसारक चार सिरासंस्थान हो सकते हैं जिनमें पहला महासिरा संस्थान ( caval system), दूसरा फौफ्फुसिक सिरासंस्थान ( pulmonary system ) तीसरा प्रतिहारिणी या केशिकाभाजि सिरासंस्थान ( portal system ) तथा चौथा कशेरुकीय सिरासंस्थान ( vertebral vein system )। उत्तरजात अर्बुद प्राथमिक अर्बुदों की ज्यों की त्यों नकल हो सकते हैं तथा उनमें विभिन्नता भी हो सकती है। विभिन्नतायुक्त वे अधिकतर मिलते हैं। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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