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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विकृतिविज्ञान यक्ष्मअधिवृषणिकापाक यमअधिवृषणिकापाक ( tuberculous epididymitis) सदैव एक उत्तरजात उपसर्ग के कारण होने वाला रोग होता है । अधिवृषणिका (epididymis) में उपसर्ग रक्तधारा द्वारा पहुँचता है। उपसर्ग के कारण यचमविक्षत या तो शीर्ष (globus major ) में बनता है या वह अधिवृषणिवाहिनी ( vas) में बनता है। वाहिनीस्थ विक्षत लसवहाओं द्वारा बस्ति या मूत्रमार्ग से उपसर्ग आने के कारण बनता है। .. यक्ष्मोपसर्ग के कारण अधिवृषणिका में यदिमकाएँ बन जाती हैं जिनके कारण वह ग्रन्थीक ( nodular ) तथा प्रवृद्ध (enlarged ) हो जाती है। यदि उपसर्ग मूत्रमार्ग द्वारा आता है तो वाहिनी उपसृष्ट होकर स्थूलित एवं ग्रन्थिक हो जाती है । पर यदि उपसर्ग का प्राथमिक कारण रक्तधारा है तो वाहिनी से ऊपर की ओर उपसर्ग चलकर शुक्रप्रपिका, पुरःस्थग्रन्थि तथा बस्ति तक पहुँच सकता है। इसका अर्थ यह हुआ कि अधिवृषणिका में आरोही उपसर्ग और अवरोही उपसर्ग दोनों देखे जा सकते हैं । अवरोही उपसर्ग बस्ति से लसवहा द्वारा अधिवृषणिका तक आता है। आरोही उपसर्ग अधिवृषणिका तक रक्त द्वारा आता है और यहां से बस्ति तक पहुँचता है। : ___ अधिवृषणिका की यचिमकाएँ किलाटीयित होने के पश्चात् चूर्णायित भी हो सकती हैं। अधिवृषणिका वृषणकोष ( scrotum) की त्वचा से संसक्त हो जा सकती है जिसके कारण उसके पश्चभाग पर बदम नाडीव्रण ( fistula. ) बन सकता है। यक्ष्मोपसर्ग के कारण अण्डधरपुटक ( tunica vaginalis) में अनेक श्यामाकसम यक्ष्मिकाएँ जड़ी हुई मिलती हैं। वहाँ पर तरल का उत्स्यन्दन होने के कारण यम मुष्कवृद्धि ( tuberculous hydrocele ) हो सकती है। ____ यक्ष्मोपसृष्ट अधिवृषणिका द्वारा यदमा वृषणों में भी पहुँच सकती है। जिसके कारण उसके अन्दर श्वेत वर्ण की दृढ़ यमिकाएं बन सकती हैं। एक वृषण का रोग सरलतापूर्वक दूसरे में भी लग सकता है । इसका प्रधान कारण यह है कि दोनों वृषणों को एक लसवाहिनीचक्र से लस पहुँचता है। ___स्त्री प्रजननांगों में, बीजकोष ( ovary ) में यक्ष्मा का उपसर्ग बहुत कम होता है। जो भी होता है वह प्राथमिक न होकर उत्तरजात होता है जो या तो बीजवाहिनी से या उदरच्छद से प्राप्त होता है। यक्ष्मबीजवाहिनीपाक __यक्ष्मा का उपसर्ग बीजवाहिनियों ( fallopian tubes ) के अतिरिक्त स्त्रीप्रजननांगों में अन्यत्र बहुत कम पाया जाता है। सब प्रकार के बीजवाहिनीपाकों में ८ प्रतिशत यचम हुआ करते हैं। यहाँ यक्ष्मोपसर्ग उत्तरजात (secondary ) ही होता है। वह भी अधिकतर रक्तधारा द्वारा प्राप्त होता है सीधा उदरगुहा द्वारा उपसर्ग बहुत कम आता है । For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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