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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विषमज्वर कीटाणु का जीवन चित्र _पृष्ठ ४७७ अमेय CHAHI 0000 ००० OM Vivinity . मैथुनीचक्र १५ इस रेखाचित्र के द्वारा विषमज्वर कीटाणु का जीवन चित्रित किया गया है। मानव शरीर में अमैथुनी चक्र बनता है जिसका वर्णन नीचे दिया जाता है:१-रक्त के लाल कण में क्षुल्लकेत या दात्रबीज (स्पोरोज्वाइट) प्रवेश कर रहा है। -लालकण में अंशुकेत (मीरोज्वाइट) प्रवेश कर रहा है। २, ३, ४-लालकण के अन्दर विभक्तक (शाइजोण्ट) के विकास की विभिन्न अवस्थाएँ। ५-लालकण में अंशुकेत भरे हुए हैं। ६-लालकण फट गया है और अंशुकेत रक्तरस में स्वतन्त्र हो चुके हैं। मच्छर के शरीर में मैथुनीचक्र चलता है जिसका वर्णन नीचे दिया जाता है: ३'-अंशुकेतु । ७-अर्द्धचन्द्राकार आकृति में अंशुकेतु । ८-पुं-अर्द्धचन्द्र । ९-स्त्री० अर्द्धचन्द्र । १०-पुं० व्यवायकायाणु (मेल गैमेटोसाइट) ११-स्त्री० व्यवायकायाणु । १२-सूक्ष्म पुं० व्यवायक की उत्पत्ति । १३-स्थूल स्त्री० व्यवायक की उत्पत्ति । १४-मैथुनी क्रिया (झाइगोसिस) से पुं० स्त्री० व्यवायक मिलकर मिथुन (झाइगोट) ___ बनाते हैं। १५-चलयुक्ता या गतिकाण्ड (ऊकीनेट) १६-अण्डकोशा (असिस्ट)। १७-तुलकोशक या बीजाणुकोश (स्पोरोसिष्ट)। १८-सुनाकेत । For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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