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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रक्तपरिवहन की विकृतियाँ तभी होता है जब वाहिनी से अल्प शाखा प्रशाखाओं वा अल्प वाहिनियों का उस क्षेत्र में पूर्णतः अभाव हो। ४. अथवा आकस्मिक सहसा गतिस्थैर्य (sudden shook) होकर मृत्यु हो जावे। उपर्युक्त समस्त परिणाम निम्न तथ्यों पर निर्भर करते हैं:(अ) धामनिक जालक्रिया ( arterial anastomosis ) की विस्तीर्णता । (आ) धामनिक जालक्रिया कितने शीघ्र हो सकती है ? (इ) धामनिक जालक्रिया प्रारम्भ होने और धमनी अवरोध के बीच के समय में जो धातुओं में रक्त की कमी देखी जाती है उसके प्रति किस धातु की कैसी अनुहृषता ( susceptibility ) है। जब किसी धमनी का अकस्मात् अवरोध हो जाता है तो वह उस स्थान से अगली शाखा तक सङ्कोच कर जाती है और उसकी जालकृत (anastomotic) शाखाएँ विस्फारित ( dilated ) होने लगती हैं। हाथ-पैरों में धमनी जालक्रिया पूर्ण स्वतन्त्रता से होती हुई देखी जाती है। तथा जब तक कि कोई बहुत बड़ी धमनी अवरुद्ध नहीं होती जालकरण हो जाता है। परन्तु यदि धमनी में विह्रास हो रहा हो और वह कठिन पड़ गई हो तो उसका विस्फार होना असम्भव हो जाता है। ऐसा वृद्धावस्था या जरठता में देखा जाता है। साथ ही जारठिक हृदय भी दुर्बल होने से रक्त भी धमनी में होकर धीरे धीरे बहता हो तो वहाँ कोथ (gangrene ) की उत्पत्ति हो सकती है। ___ इसी प्रकार आन्त्र में जब कोई सशाख धमनिका ( branch artery ) जो वहाँ २ इञ्च क्षेत्र को सींचती है अवरुद्ध हो जाती है तो झट से वहाँ अंगग्रह (spasm) हो जाता है जिसका परिणाम यह होता है कि वहाँ धमनी जालकरण कार्य रुक जाता है और रक्त का पूर्णतः अभाव इस क्षेत्र में हो जाता है और शीघ्र कोथ होने लगता है। पाशित आन्त्रवृद्धि ( strangulated hernia) में शीघ्र कोथ होने और स्थिति गम्भीर हो जाने का यही प्रमुख कारण है। ___ यही हृदय में भी देखा जाता है जहाँ धमनी-जालक्रिया की कमी और आक्षेपाधिक्य से अतिघोर हृच्छूल ( angina pectores ) होता और उतनी हृत्पेशी नष्ट हो जाती है। __ शरीर के विभिन्न अङ्गों की कोशाओं पर रक्तहीनता का प्रभाव अलग अलग पड़ता है। नियम यह है कि जो कोशा जितना ही विशिष्ट ( specialised ) होगा उतना ही अधिक उस पर रक्ताभाव वा रक्ताल्पता का परिणाम होगा। इस दृष्टि से सबसे अधिक अनुहृष ( susceptible ) कोशाएँ वातसंस्थान, आन्त्र और वृक्कों की हैं । केवल एक ओर की महामातृका धमनी ( carotid artery ) में कुछ अवरोध कर देने पर मस्तिष्क चक्र ( circle of willis ) में रक्त संवहन में कोई गड़बड़ी नहीं देखी जाती फिर भी अर्धाङ्गवात होने की पूरी पूरी सम्भावना रहती है। यही नहीं यदि ३० मिनट के लिए भी रक्तसंवहन न हो सके तो मस्तिष्क एवं सुषुम्ना के प्रगण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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