SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २७० विकृतिविज्ञान १. प्रथम यह कि हृदय के दोनों अलिन्दों को विभक्त करने वाली प्राचीर में गर्भ कालीन जाम्बव विवर ( foramen ovale ) खुला हुआ रह गया हो। जिसके कारण सिरोत्थ अन्तःशल्य फुफ्फुसों में न जाकर सीधे इस विवर द्वारा मुख्य परिवाह (greater circulation ) में जाकर मस्तिष्क वा वृक्कों में अन्तःशल्यता उत्पन्न कर दे । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. दूसरा यह कि आतंच वा जीवाणु ( clot or bacteria ) के लिए फुफ्फुस की वाहिनियाँ वृक्क वा मस्तिष्क की वाहिनियों की अपेक्षा अधिक चौड़ी होने से वे उनमें होकर पार चले जावें और किसी प्रकार की खराबी उनमें न करें । अथवा जब वे फुफ्फुस की वाहिनियों में रहते हैं तो इंतने सूक्ष्म होते हैं कि उनको वहाँ से जाना सुगम होता है । पर आगे चल कर उन अन्तःशल्यों के ऊपर तन्त्वि ( fibrin ) का आवरण चढ़ता रहता है और उन्हें स्थूल करके परिणाम करता है । सूतिकाज्वर सिराओं में अन्तःशल्य बन कर मस्तिष्क में पक्षाघात (hemiplegia ) करता हुआ देखा जाता है । यहाँ घनास्त्र दूषित वा औपसर्गिक होता है । इस जीवाणुज अन्तःशल्य के कारण ही मस्तिष्क में विक्षति होती है । एक औपसर्गिक atra मस्तिष्क की एक वाहिनी में रक्तसंवहन का अवरोध करके उस स्थान की कार्य संचालन शक्ति को नष्ट कर देता है । प्रतिगामी अन्तःशल्यता ( Retrograde Embolism ) जब कोई सिराजन्य घनात्र या कोई अर्बुद या नवोत्पत्ति ( newgrowth ) किसी सिरा में बढ़ते लगती है अथवा जब वह केशिकाओं में धारा के विरुद्ध बढ़ने लगता है तो उस अन्तःशल्य को प्रतिगामी अन्तःशल्य कहते हैं । घनात्र से बनने वाले सब अन्तःशल्यों में वैसे ही द्वितीयक परिवर्तन देखे जाते हैं जैसे कि घनात्र में पहले वर्णन किए जा चुके हैं । अन्तःशल्यों के परिणाम ( The effects & consequences of Embolism ) अन्तःशल्यों के कारण २ प्रकार के परिणाम मुख्यतः देखे जाते हैं जिनमें एक रक्त संवहन के अवरोध से तथा दूसरा अन्तःशल्य की रचना से सम्बन्ध रखता है । रक्त संवहन के अवरोध का परिणाम - जब कोई धमनी अकस्मात् अवरुद्ध हो जाती है तो निम्न परिणाम दृष्टिगोचर होने लगते हैं। : १. या तो केवल स्थानिक अवरोध देखा जाता है और कोई नवीन परिवर्तन नहीं मिलता । यह तभी सम्भव है जब वाहिनी में से अनेक शाखा प्रशाखाएँ अवरोध के स्थल से पूर्व ही निकली हुई हैं । २. या धमनी द्वारा सिंचित प्रदेश की धातुओं में स्वल्पकालीन गड़बड़ी हो कर कार्य पूर्ववत् चलने लगता है । ३. या अवरुद्ध वाहिनी द्वारा सिंचित समस्त क्षेत्र का विनाश हो जाता है । यह For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy