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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०६ विकृतिविज्ञान ७. सुषुम्ना के अग्र और पश्चशृंग दोनों । ७. अग्रश्रृंगों ( anterior horns ) पर प्रभावित होते हैं । अत्यधिक आघात देखा जाता है ८. श्लेषकोशाओं की वृद्धि कोई महत्त्व- ८. श्लेष कोशाओं (glia cells ) का पूर्ण नहीं होती मस्तिष्कछद प्रति- प्रगुणन खूब होता है तथा मस्तिष्कक्रिया नहीं होती छद की प्रतिक्रिया प्रचण्ड होती है ९. मस्तिष्कोद में कोशाधिक्य नहीं होता ९. मस्तिष्कोद में कोशाधिक्य होता है __ मस्तिष्कोद-मस्तिष्कोद का अध्ययन मस्तिष्कपाक की दृष्टि से कर लेना आवश्यक है । यद्यपि मस्तिष्कोद में कोई विशेष परिवर्तन दृग्गोचर नहीं होते क्योंकि यहाँ मस्तिष्कछद की प्रतिक्रिया देखी नहीं जाती। फिर भी कई महत्त्व के निदान के आधार हैं जिन्हें हम इससे पाते हैं और जो निम्न हैं: १. मस्तिष्कोद का निपीड बढ़ जाता है। २. मस्तिष्कोद की मात्रा बढ़ जाती है। ३. वर्तुलि (globulin ) की वृद्धि नहीं होती। ४. कोशागणन प्रायः प्रकृत रहता है पर कुछ में थोड़ा बढ़ कर ५० तक हो जाता है १०० तक कदाचित् ही कभी जाता हो । ५. कोशा सभी लसी कोशा ( lymphocytes ) होते हैं । ६. सुषुम्ना धूसरद्रव्यपाक और यदिमक मस्तिष्कछदपाक में उपस्थित तस्वि___ जाल ( web of fibrin ) यहाँ अनुपस्थित रहता है। ७. शर्करा प्रकृतमात्रा से सदैव अल्प रहती है। रोग का कारण ( aetiology ) क्या है इसके सम्बन्ध में अनेक मत हैं पर निश्चयात्मक कोई भी नहीं है। हम इनके मतों को वैज्ञानिकों के नामों के साथ स्मरण किए लेते हैं परन्तु सत्य का अन्वेषण अभी चलता ही रहेगा वीजनर-सुषवधाव्य (gram-positive) गोलाणु को रोग का कारण मानता है। ऐजनौ-वीजनर के मत को पुष्ट करते हुए सुषवधाव्य मालागोलाणु को कारण मानता है। (परन्तु गोलाणु गौण आक्रामक हो सकता है मुख्य कारण नहीं) ग्रूटर-सी सामान्य ( herpes simplex ) के विषाणु के द्वारा यह रोग फैलता है। फ्लैक्सनर-और उसके साथी इस रोग को विषाणुजनित मानते हैं पर विषाणु का पता नहीं लगा सके । लो तथा स्ट्रौस-इसके विषाणु का पता लगाते रहे । लेवैडिटी तथा हरवियर-विषाणु की खोज में तल्लीन हैं। डोअर-विषाणु की खोज में हैं। मैककार्टनी-ने शशकों के मस्तिष्कपाक का कारण एक लघु बीजाणु ( microsporidium ) माना है। For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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