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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६८ विकृतिविज्ञान यदि हिज के तन्तु पूल (bundle of His) में पेशी भाग की स्थानपूर्ति तान्तव ऊति से हुई तो एक प्रकार का रोग होता है जिसे स्टोक आदम रोग (stoke-adam's syndrome ) कहते हैं क्योंकि यहां हृत्तरङ्ग में अवरोध उत्पन्न हो जाता है । इसका प्रभाव यह होता है कि हत्तरंग निलयों को नहीं पहुंचती जिससे वे हृद्गति से मन्दगति पर स्वेच्छा से गति करती है जब कि अलिन्दों में गति स्वाभाविक रहती है। जिसके कारण नाडी मान्द्य होता है तथा मस्तिष्क में रक्त की कमी से बेहोशी के दौरे पड़ते हैं । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५) रक्त तथा लसवाहिनियों पर व्रणशोथ का परिणाम रक्तवाहिनियां ३ प्रकार की होती हैं जो धमनी, केशाल तथा सिरा कहलाती हैं । इन तीनों की रचना में पर्याप्त अन्तर होता है । धमनी में ३ पटल होते हैं जिनमें एक आभ्यन्तरी प्राचीरिका ( tunica intima ) कहलाता है इसका दूसरा नाम आन्तर चोल भी है। इसमें चिपिटित अन्तश्छदीय कोशाओं के एक ही स्तर द्वारा सम्पूर्ण धमनी का भीतरी भाग आस्तरित ( lined ) रहता है । इस आस्तर के बाहर एक तनु संयोजी ऊति तथा अन्वायाम विन्यस्त ( longitudinally arranged ) प्रत्यास्थ तन्तु ( elastic fibres ) लगे रहते हैं । यह चोल अत्यन्त तनु होता है तथा सरलता से विदीर्ण हो जाता है । मध्यम प्राचीरिका को मध्य चोल ( tunica media ) कहते हैं । इस भाग में अनैच्छिक अरेख पेशी ( unstriped muscle ) के तन्तु मिलते हैं जो वाहिनी के चारों ओर वृत्ताकार विन्यस्त ( circularly arranged ) होते हैं । इस भाग में भी अन्वायाम विन्यस्त कुछ पेशीसूत्र तथा प्रत्यास्थ तन्तु मिलते हैं । यह मध्य चोल सब से अधिक स्थान घेरता है तथा पर्याप्त मोटा एवं आकुंचन-प्रसारण का गुण रखता है । तीसरी प्राचीरिका बाह्यचोल ( tunica externa या tunica adventitia ) कहलाता है । यह तान्तव ऊति द्वारा बनता है तथा कुछ पीत प्रत्यास्थ तन्तु भी सम्मिलित होते हैं । इसी बाह्यंचोल में होकर रक्त की बहुत सूक्ष्म वाहिनियां बहती हैं जो वाहिनी प्राचीर को पोषक द्रव्य पहुंचाती हैं । इसी में स्वतन्त्र नाड़ियों ( sympathetic nerves ) का प्रतान होता है एवं लसवहायें देखी जाती हैं । धमनी के बाहर योजी ऊति की एक कंचुकी चढ़ी होती है जिसके अन्दर धमनी इधर-उधर प्रत्याकर्षण ( retraction ) कर सकती है । यह कंचुकी धमनी पर ढीली-ढीली चढ़ी होती है । जितनी ही बड़ी धमनी होगी उस पर उतनी ही बड़ी कंचुकी चढ़ी होती है और वह कंचुकी उसी अनुपात में दृढ़ भी होती है । जितनी ही धमनी छोटी होती है उसमें उनके अनुपात से उतनी ही अधिक पेशी एवं प्रत्यास्थ तन्तु का भाग पाया जाता है । केशालों की रचना बहुत साधारण होती है उनमें पेशी और प्रत्यास्थ तन्तु नहीं होता उनकी प्राचीरें चिपिटित अन्तश्छदीय कोशाओं के एक स्तर द्वारा निर्मित होती हैं । For Private and Personal Use Only
SR No.020004
Book TitleAbhinav Vikruti Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghuveerprasad Trivedi
PublisherChaukhamba Vidyabhavan
Publication Year1957
Total Pages1206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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