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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय रत्नसार । ५५१ पुग्गल संग जेह अफंदी | जे परमेश्वर निज पद लीन, पूजो प्रणमो भव्य अदीन ॥ १॥ कुसुमांजलि मेलो शांति जिणंदा ॥ तोरा चरण कमल चोवीस, पूजोरे चोवीस, सोभागी चोवीस, वैरागी चोवीस, जिणंदा ॥ कुसुमांजलि मेलो श्रीशांति जिणंदा ॥ ( यह पढ़कर घुटनों पर टीकी लगाना चाहिये ) ॥ २ ॥ गाथा || निम्मल नाण पयासकर, निम्मल गुण संपन्न । निम्मल धम्म उवएस कर, सो परमप्पा धन्न ॥ ३ ॥ ढाल || लोकालोक प्रकाशक नाणी, भवि जन तारण जेहनी वाणी । परमानंद तणो नीसाणो, तसु भगतें मुझ मति ठहराणी ॥१॥ कुसुमांजलि मेलो नेमि जिणंदा || तोरा चरण कमल चोवीस, पूजोरे चोवीस, सोभागी चोवीस, वैरागी चोवीस जिणंदा ॥ कुसुमांजलि मेलो श्री नेमि जिदा ॥ ( यह पढ़कर दोनों हाथोंको टीकी लगाना चाहिये ) ॥ ३ ॥ - For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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