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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय रत्नसार । २६३ छह री जे नर पाले रे, बहुं दांन सुपात्रे आले रे, ते जनम मरण भय टाले ॥ या० ॥ १३ ॥ धन २ ते नर ने नारी रे, भेटे विमलाचल इक तारी रे, जइये तेहतणी वलिहारी ॥ या० ॥ १४ ॥ श्रीजिनचंद्र सूरि सुपसाये रे, जिनहर्ष हिये हुलसाये रे, इम विमलाचल गुण गाये ॥ या० ॥ १५ ॥ ॥ श्रीऋषभदेवजी का स्तवन । ऋषभ जिनेसर दिनकर साहिब, बीनतड़ी अवधारो रे ॥ जगना तारू ॥ मुझ तारो जी कृपानिध स्वांमी, जग जसवाद प्रगट छै ताहरो, अविचल सुखदातारो रे ॥ ज० ॥ १ ॥ मु० ॥ निज गुण भोक्ता पर गुण लोप्ता, आतम शक्ति जगायो रे ॥ ज० ॥ अविनासी अविचल अविकारी, वासी जिनराया रे ॥ ज० ॥२॥ मु० ॥ इत्यादिक गुण श्रवणे निसुणी, हुं तुम चरणे आयो रे ॥ ज० ॥ तुम रीझावरण हेते ततखिण, नाटक खेल मचायो रे ॥ ज० ॥ ३ ॥ ० ॥ काल अनंत रह्यो For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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