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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६२ स्तवन-संग्रह। संघाते रे, एतो पोहता पद लोकांत ॥ या० ॥४॥ काती पूनम कर्मने तोड़ी रे, जिहां सीधा मुनि दस कोडी रे, ते वंदो बे कर जोडी ॥ या० ॥५॥ इम भरतेसरने पाटे रे, असंख्यात साधु थिर थाटे रे, पांम्या मुगति तणी ए वोट ॥ जा० ॥ ६॥ दोय सहस मुनी परवारे रे, थावच्चा सुत सुखकारे रे, सय पंच सेलग अणगार ॥ या० ॥७॥ देवकी सुत सुजगीसे रे, सीधा बहु यादववंसे रे, ते नमो रे नमो मन हींसे ॥ या० ॥८॥ पाचे पांडव इण गिर आया रे, सीधा नव नारद ऋषिराया रे, वली संब प्रज्जुन कहाय ॥ या० ॥६॥ ए तीरथ महिमावंते रे, जिहां सीधा साधु अनंते रे, इम भाष्यो श्रीभगवंत ॥ या० ॥१०॥ उज्जल गिर सम नही कोइ रे, तीरथ सगला मे जोइ रे, जे फरस्यां पावन होइ ॥ या० ॥ ११ ॥ एकाहारी ने सचित्त पहारी रे, पदचारी ने भूमि संथारी रे, शुद्ध समकित ने ब्रह्मचारी ॥ या० ॥ १२॥ इम For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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